टॉपिक:- “अजनबी अपने ही घर में ”
मैं अपने ही घर में अजनबी हूँ,
जहां प्यार और स्नेह होना चाहिए था।
अनजान चेहरों के बीच,
मैं खुद को खोया हुआ पाती हूँ।
दरवाजे खुले हैं, पर दिल बंद हैं,
संवादहीनता की दीवारें हैं।
प्यार की जगह, अब दूरियां हैं,
और मैं अजनबी हूँ, अपने ही घर में।
मैं चुपचाप चलती हूँ, अपने ही घर में,
डरती हूँ कि कहीं आवाज न हो जाए।
मैं अपने ही घर में, एक अनजान हूँ,
जो अपने ही लोगों से डरती है।
प्यार की अनुपस्थिति में, मैं खोई हुई हूँ,
अपने ही घर में, मैं अजनबी हूँ।
मैं अपने ही घर में, एक पराया हूँ,
जो अपने ही लोगों से दूर है।
मैं चाहती हूँ कि मेरे दिल की बात,
सुनी जाए, पर कोई सुनता नहीं।
मैं चाहती हूँ कि मेरे आंसू,
पोंछे जाएं, पर कोई नहीं पोंछता।
मैं अजनबी हूँ, अपने ही घर में,
जहां प्यार होना चाहिए था।
मैं अपने ही घर में, एक अनजान हूँ,
जो अपने ही लोगों से डरती है।
@प्रियंका नरसाळे
क्वालीफायर राउंड
बोलती कलम
अल्फ़ाज़ ए सुकून