प्रतियोगिता: “बोलती कलम”
Topic “अनहोनी, एक अंदेशा”
वो अनहोनी एक अंदेशा थी, जो दिल को हिला दे,
पहलगाम की वादियों में खून की धारा बहा दे।
शहीदों के परिवार की आँखों में आंसू की धारा बहा दे,
अरमानों के बिखरने की दास्तान बना दे।
सपनों की सिलवटें मिटी नहीं अब तक,
फैसले जो लिए थे, सब राख हुए,
वो चाहत थी – जीने की,
वो भी किसी ‘चाहे गए’ हमले में ख़ाख हुए।
जो बच गए उनके दिलों में उजडा हुआ ख्वाब रह गया।
आने वाली पीढ़ी के अंदर नफरत और खौफ रह गया।
कभी खुशियाँ मनाने निकले लोगो की,
एक मोड़ पर हादसे की कहानी बन जाती हैं।
कोई अंदेशा नहीं होता बस यादों की रवानी बन जाती है।
कभी किसी की बातों पे भरोसा होता है,
पर सामने वाला नीयत में ज़हर छिपाए बैठा होता है।
लबों पे थी बातें, पर निकले अनजाने बोल,
कभी डर एक्सीडेंट का, कभी साजिश का है डोल।
कितनी अनहोनी का लगाएं हम अंदेशा,
कुछ आती है चुप चाप, कुछ देती है संदेशा।
हर पल है एक नया खौफ यहां, एक नया पेचा।
कभी सड़कें धोखा देती हैं,
तो कभी मौसम कफ़न उड़ा देता है।
कभी दुश्मन साजिश रचते हैं,
तो कभी अपने ही पीठ में छुरा घोंप जाते हैं।
तो कैसे कहें के हम किस किससे बचें?
किस सड़क पर चलना है,
किस दिन नहीं निकलना है?
किस पल के लिए दुआ करनी है,
किस बात का जश्न मनाना है……?
क्योंकि अनहोनी सिर्फ़ एक घटना नहीं,
वो एक डर है जो दिल के साथ धड़कता है।
वह एक खौफ है जो हर सोच में दहकता है।
पर फिर भी हर सुबह उम्मीद का नया सूरज उगता है,
हर दिल में उम्मीद का दिया जलता है।
अंधेरों के बाद ही उजालों का कारवां चलता है…..
जो बिखरा हैं वो भी फिर से सँभलता है,
कहते हैं कि समय सब कुछ बदल देता है।
©Sadia
चतुर्थ चरण।
प्रतियोगिता: “बोलती कलम”