विषय – ‘अब यह चिड़िया कहां रहेगी’
(प्रथम चरण)
टूटी डाली,बिखरा सपना,
अश्कों मे डूबा हर अपना,
एक कोना था जहाँ बसी थी,
अब वो साँसें कहाँ रहेंगी?
घोंसला उसका छिन गया है,
हर आश्रय से बिछड़ गया है,
किससे पूछे,कहाँ बसेगी?
अब ये चिड़िया कहाँ रहेगी?
ये देख हर चेहरा बेखबर है,
इंसानियत के नाम पर ज़हर है,
जिन हाथों ने पेड़ था काटा,
उसने दोष हवाओं पर दे डाला।
बचा न कोई कोना अब उसका,
ज़मीर भी शायद मर गया है सबका।
स्वरचित:
स्वीटी कुमारी ‘सहर’