कविता प्रतियोगिता-काव्य के आदर्श
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प्रथम चरण
शीर्षक: अब यह चिड़िया कहां रहेगी
रचयिता: सुनील मौर्या
अब यह चिड़िया कहां रहेगी
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तिनका-तिनका जोड़कर जिसने स्वप्नों का नीड़ बुना,
अब उसकी शाखा टूट गई, जीवन का जब सुर छिना।
हवा सी जो उड़ती थी कभी, अब थमी-थमी सी रहती है,
पंखों में है थकान बहुत, पर उड़ने की ज़िद करती है।
आकाश नहीं अपनाता है उसे, धरती पर काँटे उगे हुए हैं,
वो चिड़िया किस छांव में जाए, हर रास्ते में सब सघन बैठे हैं।
न गीत रहा, न राग बचे, बस मौन बिखरा है चारों ओर,
भावों की एक टूटी डोर से वो जोड़े फिर से अपना छोर।
ना कोई उसका ठिकाना है, ना कोई उसके स्वर को पूछे,
अब यह चिड़िया कहां रहेगी — ये प्रश्न हवा में रोज़ गूँजे।
चहचहाहट उसकी शान थी, अब साँसों में भी कैसी टूटन है,
वो बोलती है जो भीतर से, वो भाषा अब एक सूनी दर्पण है।
पर फिर भी बैठी है चुपचाप, अब कागज़ की एक टहनी पर,
शब्दों में आसरा ढूंढती, किसी अनकही व्यथा की डबडबाहट भर।
अब चिड़िया नहीं रही तो, वृक्ष, नदियाँ, पवन भी रोएँगे,
प्रकृति के साथ हम भी, एक दिन सब ख़त्म हो जाएँगे।
✍️ सुनील मौर्या