नमन अल्फाज-ए-सुकून🙏🏻
विषय:-
“*वो तोड़ती पत्थर*”
वो तोड़ती पत्थर, छाँव से कोसों दूर,
पैरों में छाले, आँखों में नूर चूर।
ना भाग्य लिखा, ना किस्मत का राग,
हर चोट में छिपा, बेबसी का फाग।
माथे पे लहराता पसीने का पहाड़,
जिस पर न कोई कविता, न कोई अख़बार।
चूड़ियाँ खनकती थीं अब हथौड़े में,
बिंदी खो गई थी उस पसीने के घोड़े में।
ना मांगती भीख, ना लिखती कथा,
बस पत्थरों से करती रोज़ बातों की व्यथा।
बच्चे भूखे हैं — ये सोच के जीती,
हर चोट को हँसी में सीती।
हड्डियाँ चटकतीं पर होंठ ना कांपे,
वो औरत थी — लौह सी, ना छांव मांगे।
हर दिन, हर दम, संघर्ष में जली,
पर उम्मीद की लौ वो कभी ना भुली।
वो औरत नहीं — एक इतिहास थी,
जो ज़िंदा होते हुए भी लाश थी।
—
〽️ दो लाइनों की अंतिम शायरी…
“वो पत्थर तोड़ती रही ज़िंदगी की राह में,
खुद बिखरती रही, पर सींचती रही चाह में।”
✍🏻✍🏻 Swati singh