“आईने से एक मुलाक़ात”

“आईने से एक मुलाक़ात”

आज फिर देखा मैंने —
आईने में एक चेहरा झुका हुआ।
होंठ खामोश, आँखें सवालों से भरी,
जैसे कुछ कहना चाहता हो…
पर कह नहीं पा रहा।

मैंने पूछा —
“कौन हो तुम?”
वो बोला —
“मैं वही… जिसे तूने छुपा रखा है।
तेरे मुस्कुराते चेहरे के पीछे,
तेरी टूटी हुई परछाई हूँ।”

मैंने कहा —
“पर मैं तो सब ठीक हूँ,
चल रहा हूँ, लड़ रहा हूँ!”
आईना हँस पड़ा —
“चल तो रहा है… पर ज़िंदा कहाँ है तू?”

वो मेरे ज़ख्मों को गिनने लगा,
जो मैं खुद को भी भूल चुका था।
हर शिकवा जो कभी किसी से नहीं कहा,
आईना पढ़ रहा था मेरी आँखों से।

मैं चुप था…
क्योंकि आज कोई था जो मेरी ख़ामोशी समझ रहा था।

फिर मैंने पूछा —
“क्या मैं टूट गया हूँ?”
आईना बोला —
“नहीं… तू तो वो दरार है,
जिसने रोशनी को भी गुज़रने दिया है।”

“तू टूटा है पर बिखरा नहीं,
तू रूठा है पर मरा नहीं।
तेरी लड़ाई तुझसे है,
और जीत भी तुझी से होगी!”

उस दिन पहली बार,
आईने ने मेरा चेहरा नहीं…
मेरी रूह दिखा दी थी।

लेखक:
ऋषभ तिवारी
(पेन नाम —लब्ज़ के दो शब्द)

धन्यवाद एवं शुभकामनाओं सहित,🙏🙏
ऋषभ तिवारी

📧 [rajtiwarip2003@gmail.com]

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