*नमन अल्फ़ाज़ a सुकून मंच* 🤗🙏🏻🌸
*प्रतियोगिता – दिल से दिल तक*
*टॉपिक – एक ख़्वाब*
स्वरचित रचना – शारदा ठाकुर बिहार ✍️
एक ख़्वाब सा था जो अब टूट गया है _
किसी का हाथ था हाथों में, अब वो छूट गया है_।
अब उन ख्वाबों का कोई मतलब न रहा __
दिल में दफ़न कर हर यादों को, किसी से कुछ न कहा।
रूठे भी कई बार मगर खुद को ख़ुद ही मना लिए _
हां वो ख़्वाब वहम सा था, ये कहकर खुद को समझा दिए _!
उजड़े नहीं थे “ग़ालिब
पर अब किसी ने उजाड़ दिया है _
मासूम से चेहरे को भी किसी ने बिगाड़ दिया है।।
माना जिसे सबसे ज्यादा उसने ही यूं तोड़ दिया __
लाया ऐसी कस्ती में, जहां जीवन की दिशा ही मोड़ दिया।।
संभल कर भी तो अब कहां संभल रहे हैं __
मौत सामने हो भी तो हम कहां मर रहे हैं।।
छोड़ देता है ऐसे अंधेरे में लाकर महबूब, जहां से निकलना नामुमकिन होता है __
वो सुने भी न रूह ही तड़प, आह”
ये आंखे ऐसे किसी बच्चे की तरह रोता है_!!
डसती है दुनियां की रौनक जहर सी लगती है सबकी बातें __
जब लेते हैं कई करवट और न नींद आंखों में, तो मत पूछो कैसे कटती है वो काली रातें _!!
एक ख़्वाब सा था जो अब टूट गया है _
किसी का हाथ था हाथों में, अब वो छूट गया है।।
शोर अन्दर का समेट कर अब मैं कहीं चले जाना चाहती हूं ___
सच कहूं तो अब सबसे कहीं दूर चले जाना चाहती हूं।।
जी लेंगे ख़ुद को उलझा कर कहीं तेरी यादों से दूर निकल जाएंगे _
इस जगह को न देखेंगे पलट कर कभी, न कभी वापस आएंगे _!!
शून्य हो जाऊं तो सुकून मिल जाएगा __
ये रूह जब ईश्वर के घर जाएगा।।
मिले ईश्वर तो लिपट कर जी भर के रो लूंगी __
सताया है इस धरती पर कितना लोगों ने ये बात उनसे जरूर कहूंगी_!!
एक ख़्वाब सा था जो अब टूट गया है _
किसी का हाथ था हाथों में, अब वो छूट गया है_।
*लेखिका – शारदा ठाकुर बिहार* ✍️ 🌸