विषय – कलम की धार, तलवार से तेज
जब आवाज हिला सके न सत्ता को ,
न हाथियार काम ही आते हैं,
तो तू लिख के ऐसा फरमान भेज,
रख कलम की धार , तलवार से तेज…।
तिलमिला उठे ये वादे झूठे,
बातें करते रहे थे जो चिकनी चुपड़ी,
है वक्त आ गया जवाब का अब,
बना कलम की धार , तलवार से तेज…।
जनता का दुख किसने देखा ,
मीडिया भी बिकी है देखो तो ,
चल बोल दे सच क्या रहा सोच ,
है कलम की धार, तलवार से तेज…।
उम्मीद दिला तू दुखियों को ,
लौटा ला उनकी खुशियों को ,
क्यों नहीं भरा अब तक है रोष ,
दिखा दे तू ये कलम की धार, तलवार से तेज…।
दुनिया भर का दारोमदार, अपने कंधों पर ढोकर भी,
कितने ही कुचले गए यहां, अपना सब कुछ खोकर भी,
न रहा है उनमें उच्च्क्षवाश , न रही कोई इच्छा है शेष,
बैठना नहीं है अब तुमको, बता है कलम की धार तलवार से तेज..।
देखा तो सबने सब कुछ है , पर विरुद्ध भला बोलता है कौन,
जिनको सच में सब कहना था वो भी है डर के कारण मौन,
बस जगाना है तुमको जनता का वो खोया आक्रोश ,
कर कुछ ऐसा की साबित हो, है कलम की धार तलवार से तेज…।।
काजल सिंह ज़िंदगी ✍️
प्रतियोगिता – बोलती कलम
राउंड टू
अल्फ़ाज़ ए सुकून