विचारों को स्याही और कलम को हथियार बनाया है,
तक जाकर ज़िन्दगी का , एक सिरा हाथ आया है,
लिखी है मेरी कलम ने खुशियां और दर्द भी लिखा है,
झूठ को कुचल कर सच्चाई का हर हर्फ भी लिखा है,
है कलम की धार, तलवार से तेज,
सच को रख दे चीर के, करे झूठ से गुरेज,
बंद कमरों में बैठकर भी , ये आसमान छू जाती है,
झूठ मर जाता है तब , सच्चाई जी जाती है,
सहम जाती है कलम , जब बिक जाते हैं कलम के सिपाही,
झूठ सिर उठाता है और कहीं दफन हो जाती है सच्चाई,
वैसे तो हुनर है कलम में , इतिहास बदलने का,
झूठ को कुचल कर सच की राह पे चलने का,
मगर जब जब दौलत के तराजू में, ये कलम तौल दी जाती है,
सच को देखकर भी सामने , यह मौन रह जाती है ,
कभी कमजोरों की ताकत , कभी शोषित की आवाज भी बनी है,
जुल्म के ख़िलाफ़ लड़कर, कलम से तलवार भी बनी है ,
विषम परिस्थिति में भी , कलम ने हार नहीं मानी है,
इस दुनिया ने भी कलम की , ताकत पहचानी है,
प्रयास करती हूं , कि मेरी कलम बस सच को ही लिख पाए,
मेरी कलम से निकले शब्द , किसी का हृदय ना दुखाए,
अपनी कलम के सहारे ही , हर चुनौती स्वीकार करती हूं ,
अपनी कलम रूपी तलवार से , हर बुराई पे वार करती हूं ,
निकल पड़ी हूं काव्य पथ पर ,लिए छोटा सा हथियार ,
मत समझना इसे छोटी से समसि, इसी ने हर मुद्दे पर उठाई है आवाज,।।
पूनम आत्रेय ,
राउंड 2
बोलती कलम ,
अल्फ़ाज़-ए-सुकून