कलम बनाम तलवार

सीरीज 1 प्रतियोगिता 2
शब्दों की ताकत : कलम से आवाज़ तक
प्रतियोगिता टॉपिक : “कलम बनाम तलवार”
चरण : प्रथम
रचयिता : सुनील मौर्या

कलम बनाम तलवार
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🗡️ तलवार कहती है:
मैं चमक हूँ, आंधी हूँ, रणभूमि की आवाज़,
मेरे संग कई राजाओं ने रचा था इतिहास।

1857 की ज्वाला में जब पूरा देश एक हो रहा था,
रानी लक्ष्मीबाई ने मुझे थाम, आज़ादी का बिगुल बजाया था।

🖊️ कलम मुस्कराकर:
हाँ, तेरी धार से साहस का गीत गाया गया,
पर मेरे शब्दों से ही वो विद्रोह जगाया गया।

“इंक़लाब ज़िंदाबाद” मेरी स्याही से ही था गूँजा,
औपनिवेशिक साम्राज्य का किला जब भीतर से टूटा।

🗡️ तलवार:
मैं ही तो थी जिसने पानीपत में सम्राटों को झुकाया,
लाल किले पर मेरी गूँज ने कितने तख्तों को हिलाया।

🖊️ कलम:
वही लाल किला देश की आज़ादी का प्रतीक बना,
जहाँ मेरे लिखे भाषण ने भारत का तिरंगा लहराया।

🗡️ तलवार:
मुझसे साम्राज्य बने, मुझसे ही बिखरे,
मैंने ही रण में लाखों योद्धा थे बनाए।

🖊️ कलम:
पर मेरी लेखनी से गांधी जी ने सत्याग्रह रचा,
बिना बारूद, हथियार के, ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाया।

🗡️ तलवार (कुछ नरमी से):
ठीक है, तेरा असर पीढ़ियों तक जाता है,
पर साहस का पहला कदम अक्सर मुझसे ही उठता है।

🖊️ कलम (गंभीर स्वर में):
सच है, पर तेरी जीत क्षणिक और मेरी अमर है,
अंबेडकर की लिखी संविधान की पंक्तियाँ आज भी प्रखर हैं।

अंतिम स्वर (दोनों मिलकर):

इतिहास गवाह है — तलवार ने कितने युद्ध हैं जीते,
पर कलम ने करोड़ों दिलों को जोड़कर इतिहास रचा..

सुनील मौर्या

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