प्रतियोगिता – काव्य के आदर्श
विषय – ख्वाहिशें
ज़िन्दगी गुज़रती रही और ख़्वाब कुचलते रहे,
ख्वाहिशें क्या बदली ,थोड़े हम भी बदलते रहे,
क्या बात उन ख़्वाबों की करे, जो दिल मे दफ़न हो गए,
वक़्त के थपेड़े ही ,उन ख़्वाबों के कफ़न हो गए,
जब ज़िम्मेदारियाँ सर पर पड़ी ,सब ख़्वाब हवा हो गए,
सब चैन-ओ-सुकूँ खो गया , अब तो दर्द दवा हो गए,
जब भी सर उठाया ख्वाहिशों ने, वक़्त ने चुप करा दिया,
काँटो की चुभन पा के भी , मेरा हर ख़्वाब मुस्कुरा दिया,
आदत सी हो गई थी हमें , अब ग़मों के साथ जीने की,
कोशिशें की थी हमनें, क़लम की नोंक से ज़ख़्म सीने की,
लिखकर के ख़्वाब काग़ज़ पर, मिटा दिया करते थे,
सभी को एक बार मौत आती है, हम हर लम्हा मरते थे,
टूटी हुई हर ख्वाहिश को , हौसलों से संभाला था ,
बड़ी ही मशक्कत से खुद को , उस गर्त से निकाला था ,
उन बेतरतीब सी ख्वाहिशों को , अब अल्फ़ाज़ ने संवारा है,
हमारा कल किसी और का था, पर आज सिर्फ़ हमारा है।।
अंतिम चरण
-पूनम आत्रेय