प्रतियोगिता: आईने की बात
टॉपिक: खुद से संवाद
खो कर खोखली हक़ीक़त में खुद का साया,
अब चाहती हु कुछ वीरान शीशों में खुद को तलाश करना।
क्या ये मन हमेशा से ऐसा ही था?
अब चाहती हु उस पिछड़े हुए वजूद को याद करना।
वो खोया हुआ बचपन, वो बेफिक्र ज़माना,
वो नए दोस्त बनाने का उत्साह, वो पहले प्यार का अफसाना।
आईने में झाँकना बिना मुस्कान के,
हर सदी का हिसाब दिन-रात करना।
जिम्मेदारी अब जिंदगी बन गई है,
मुश्किल है अब खुद से संवाद करना।
आज खुद की अधूरी दास्तां को दोबारा सुनना चाहती हु,
मौका मिला अगर कुछ मांगने का,
तो में एक बेहतर भविष्य चुनना चाहती हु।
मन की दरारों में रोशनी भरना चाहती हु,
जो कह न सकी थी किसी से कभी,
उन्हीं अल्फाजों को खुद से एक बार कहना चाहती हु।
मुझे मेरे सपनों को कोई नाम देना है,
ख्वाहिशों को आवाज़ देकर खुशियों का पैगाम देना है।
खुद की हार को अपनाना सीखना है,
दुनिया को एक बार अपने नज़रिए से देखना है।
कभी हँस के जीना है, कभी रो के जीना है,
जीवन के धागे में, खुद से खुद के मोती पिरोना है।
एक सच्चा रिश्ता आत्मा और शरीर के बीच बनाना है,
खुद से संवाद करके मुझे खुद को पाना।
©Sadia