क्यों होता है ये जलवायु परिवर्तन,कौन जिम्मेदार?
मनुष्य का प्रकोप कहूं या फिर कहूं अंधी सरकार,
हमेशा ही तुम करते हो क्यों इसके साथ छेड़छाड़,
जो मिला हमे भगवान से प्रकृति का सुंदर वरदान।
तुम हमेशा काटते हो पेड़ों को अपने लाभ के लिए,
क्या तुम्हे ज्ञात नहीं है पेड़ जरूरी हैं श्वास के लिए,
अब वो बेघर जानवर कहां भटकते फिरें तुम कहो,
कैसे किसी सरकार से गुहार करें आवास के लिए।
फैक्ट्रियों का कचरा भी नदियों में तुम बहा देते हो,
लाखों लोगों को तुम वही दूषित जल पिला देते हो,
जलवायु परिवर्तन क्यों हो रहा है ये कैसा प्रश्न है?
मनुष्य करता है सब फिर प्रकृति को दगा देते हो।
हर महीने बमों का परीक्षण कोई उपग्रह का जाना,
विज्ञान के लिए सर्वोपरि है चलो ठीक है मैने माना,
लेकिन उससे निकलने वाली इतनी जहरीली गैसें,
ये स्पष्ट कर देती हैं कि मुश्किल है शुद्ध हवा पाना।
न रहा कहीं शुद्ध पानी न रहा कोई भी शुद्ध खाना,
उर्वरकों से भरपूर जमीन से निकला हर एक दाना,
विज्ञान की प्रगति सब के लिए अभिशाप बन रही,
विलुप्त गौरैया जैसे पक्षियों को देख के मैने जाना।
तुम करते हो लाभ के लिए हमेशा खुदाई जमीं पर,
कौन सा हिस्सा बचा है खुदने से भूतल में महीं पर,
ये टेक्टोनिक प्लेट्स खिसकना ये भूकंप का आना,
ये दोष भी मैं मढ़ता हूं अपनी कलम से आदमी पर।