प्रकृति से छेड़छाड़ कर,कितना बदला है,
कहीं पहाड़ काटे,कहीं जंगल से बर्बरता है…
मानव खुद के सुकून खातिर खेल खेला है,
जंगल में बसर कर, पशुओ को काटा है….
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आधुनिकता के चक्कर में जहर उगला है,
कारखानो का हरपल वायु दूषित करना है…
रासायनों का प्रयोग, लालच का नतीजा है,
अत्यधिक खनन कर,प्रकृति चक्र तोड़ा है,…
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नतीजा है सामने, जलवायु का परिवर्तन,
कहीं अतिवृष्टि, कहीं अनावृष्टि होना है…
भर्मण के लिये पहाड़ो पे बनाया ठिकाना है,
खचरा फैला वहां भी, संतुलन बिगाड़ा है…
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कम हिमपात,भू-स्खलन का फिर होना है,
तबाही का मज़र,प्रकृति का प्रकोप देखा है…
मानव ही बना है, मानव विनाश कारण है,
जलवायु तो अन्यथा बस प्राणदायक है…
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आधुनिकता के चक्कर में इंसां पागल है,
दिखता है विनाश,फिर भी खुद पे क़ायम है…
जलवायु परिवर्तन, सोचो कौन जिम्मेदार है,
यहां मानव ही मानव का कर रहा विनाश है…