जुनून ही पहचान

सीरीज वन प्रतियोगिता : 03
” जयघोष ”
विषय : जुनून ही पहचान

मैं जुनून-ए मसाफ़त में घर से निकला था,
मैं खुद की पहचान बनाने घर से निकला था…
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आबोहवा ने रोका,मैं कर-गुजरने निकला था,
बेड़ियाँ थी पैरों मे, जब मैं अकेला निकला था…
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कितनी बे-अदब है दुनियां, फिर ये जाना था,
ठोकरों में बसर कर, वक़्त वो निकाला था…
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हर्फ़ हर्फ़ परेशाँ,मैं एक आग जला निकला था,
नाकामियों का धुआँ,मेरी मेहनत से निकला था…
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अज़ाब-ए सफ़र फिर जुनून से निकला था,
मुक़म्मल होना,ऐसा जैसे मैं आग से निकला था…
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एक दफ़ा लगा ख़त्म,उस हालत-ए-हाल में था,
चश्म-ए-तर ऑंखें देख,खुदा का सर पे हाथ था…
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कबीर बे-सबब अपनों ने,हरदम मुझे टोका था,
किस से हूँ खफ़ा,खुद से खफ़ा होकर निकला था…
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मसाफ़त = नशा होना, अज़ाब = संघर्ष

Kabir pankaj

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