“जयघोष”
( स्वरो का उत्सव, भावनाओं का जयघोष )
ख़याल
विषय: जुनून ही पहचान
राह कठिन हो चाहे, मैं हार न मानूँगी,
तूफ़ानों के बीच भी, सपनों को जानूँगी।
अंधियारे के बीच में, उम्मीद जगाऊँगी,
अपने जज़्बातों से, इक नया जहाँ बनाऊँगी।
गिरकर भी हर बार, फिर उठ खड़ी होऊँगी,
चोटों के निशानों को, ताज समझ पहनूँगी।
दिल की गहराइयों से, आवाज़ यही आए,
“जुनून ही पहचान है”, यह सच कोई छुपाए?
हर मुश्किल के पार में, मंज़िल मुझे पुकारे,
मेहनत की मशाल से, अंधकार को सँवारे।
पसीने की बूंदों में, ख़ुशबू मिले सफ़लता,
जुनून के परचम से, लिख दूँ नई दास्तां।
सपनों की रौशनी से, आँखों को सजाऊँगी,
न हारूँगी कभी भी, न रुक-सी मैं जाऊँगी।
पत्थर भी पिघलेंगे, जब आग जलाऊँगी,
विश्वास की लौ से, हर दीप जलाऊँगी।
दुनिया चाहे कहे कुछ, पर खुद पे भरोसा है,
मेरी क़लम का सफ़र ही, मेरी असली परिभाषा है।
सुन ले ऐ मुश्किलें, अब तुझसे न डरूँगी,
अपनी मेहनत से मैं, हर इतिहास लिखूँगी।
तेज़ हवाओं के आगे, मेरा इरादा खड़ा है,
तूफ़ान के बीचोंबीच भी, मैं सीना तान खड़ी हूं।
मेरी हिम्मत की गवाही, मेरा सफ़र देगा,
हर ज़ख़्म भी मुस्कुरा कर, इक नया असर देगा।
ये मंज़िलें झुकेंगी, मेरे क़दमों तले एक दिन,
कह दूँगी सबको प्उडली — जुनून ही पहचान है, यही मेरी तक़दीर है।
“स्वाती” का इरादा न कोई मिटा सके, उसके जुनून से ही उसका आसमान है।
✍️✍️swati singh