प्रतियोगिता – दिल से दिल तक
विषय – मुकद्दर तेरा मेरा
ज़िन्दगी की राह में, चलते चलते मुलाक़ात हुई ,
एक जुंबिश थी तुममें ,आँखों आँखों मे बात हुई,
हाथ थामकर हम चले ,फिर ज़िन्दगी की राहों में,
एक सुक़ून पाया था ,आकर हमनें तेरी बाहों में,
गुज़रतें रहे दिन यूँ ही प्यार भरी चुहलबाजी में,
दिल धड़कना छोड़ देता था मेरा ,तेरी नाराजी में,
चाँद भी देख हम दोनो को लजाता शर्माता था,
चाँदनी रात में चेहरे पर तेरे,और नूर आ जाता था,
एक धुन थी सरगम की ,चाँदनी रात और हम तुम,
चाँदनी तकती थी हमें ,जब प्रेम में थे हम गुम,
अब साथ ना छूटेगा जन्मों जन्म तक मेरा तुम्हारा,
मै जिन्दगी तुम्हारी हूँ ,तुम हो मेरा सहारा ,
मुक़द्दर तेरा मेरा , जिस रोज जुड़ गया था,
ख़ुशी का हर लम्हा ,हमारी ओर मुड़ गया था,
एक लंबी पारी उम्र की ,एक साथ खेली है,
दर्द और तकलीफें ,हमनें सब साथ झेली हैं,
तुम्हारा साथ है तो सफ़ऱ आसान हो गया है,
मैं तेरा और तू मेरा ,अब अरमान हो गया है,
ढलती उम्र में भी बस , तेरा साथ बना रहे,
जद्दोजहद भरा लम्हा भी ,ख़ुशियों से सना रहे,
उपकार उस ईश्वर का ,जो तेरा साथ मिला है,
तक़दीर से शिकवा रहा,ना मुक़द्दर से गिला है,
कैसे आज भी दर्द में तुम,मेरा हाथ थाम लेते हो,
मेरी ज़रा सी कोताही पर ,निर्देश तमाम देते हो,
यूँ ही जुड़ा रहे जन्म जन्मांतर ,मुक़द्दर तेरा मेरा,
फ़िर झिलमिल रहेगी शामें,मुस्कुराएगा सवेरा ।।
-पूनम आत्रेय