नेता बदलते हैं, नीयत नहीं

नेता बदलते है, नीयत नहीं

नेता बदला है, बस सूट का रंग नया है,
नीयत वही पुरानी, बस वादों का ढंग नया है।

कभी कहते हैं — “हर हाथ को काम देंगे,”
और फिर खुद ही हाथ झाड़कर भाग लेंगे।

गाँव में वादा किया लायेगें पानी का,
टैंकर उनके बंगले के पीछे खड़ा पानी-पानी सा।

शहरों में बुलेट ट्रेन की बात बड़ी होती है,
और ग्रामीण स्कूल में अब भी छत टपकती होती है।

रैलियाँ ऐसी, जैसे बारात निकली हो,
फर्क बस इतना — यहाँ दूल्हा भी झूठ बोल रहा हो।

घोषणाएँ आती हैं, जैसे सेल लगी हो लोकतंत्र की,
“खरीदिए गरीबी हटाओ योजना — केवल चुनाव तक की!”

हर बजट में गरीबों को ‘फायदा’ होता है,
बस वो फायदा किसी टॉप 5% के अकाउंट में जमा होता है।

“हम और मैं” की बहस में मोहल्ले बंटते हैं,
और नेता टीवी पर देश जोड़ने की बातें करते हैं।

कभी कहते हैं “डिजिटल इंडिया बनाएँगे,”
फिर पेपर वाला राशन कार्ड ढूँढते रह जाएँगे।

तिरंगे की आड़ में, काले धन की बाढ़ है,
देशप्रेम भी अब प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिकता माल है।

हर योजना फ़ाइलों में इतनी घूमती है,
जैसे सरकारी दफ्तर में गुमशुदा हो गई हो नीति।

काम पूछो तो कहते हैं — “विचाराधीन है सरकार”,
जैसे जवाब देने की भी कोई ई.एम.आई. भरनी हो यार।

नेता बदले — चेहरे, पार्टी, पोस्टर सब कुछ बदला,
पर कुर्सी पर बैठते ही ‘नीयत’ ने फिर वही चाल चला।

©गार्गी गुप्ता
तृतीय चरण

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