नेता बदलते हैं नीयत नहीं

प्रतियोगिता – तंज की ताकत
विषय – नेता बदलते हैं नीयत नहीं
सेमीफाइनल राउंड

बदलते हैं लोग बदलती हैं सोच बदलना सबको पड़ता हैं
लेकिन हमारे देश में नेता कोई भी हो भ्रष्ट ही वो रहता हैं
सफ़ेद पोषक पहन लाल बत्ती में खुद को ख़ुदा हैं मानते
असलियत में इनके अंदर लोभ और अत्याचार पनपता हैं

एकता के कितने पौधें हम मिलकर लगा ले अपने देश में
नेता चरता हैं देश पूरा जैसे भैंसे खाती घास हमारे खेत में
सबकी मजबूरियों में इनको अपना फ़ायदा ही नज़र आता
नेताओं की नीयत दिखती इनके खातों में पैसों के रूप में

बलात्कार, भ्रष्टाचार, हत्याएं और चोरी इनको खूब भाती
इन घटनाओं में भी इनको केवल राजनीति ही नज़र आती
देते बयान ऐसे जो सुन कर जनता का भी होश उड़ जाता
इनके थाल में अनेकों व्यंजन गरीब में सूखी रोटी पाई जाती

सारी योजनाएं इनकी बस कागज़ों में ही घूमती रह जाती
जनता की मूल समस्याएं तो इनको कभी नज़र नहीं आती
इनके शौक भी तो अब इनके ही जैसे निराले होते हैं शिवोम
अक्सर चकलाघरों में इनकी लाल बत्ती देखने को मिल जाती

अस्पतालों की लाइनों में ही यहां ज़िंदगी भी दम तोड़ देती हैं
नेता सोते हैं महलों में और आधी आबादी फुटपाथ पे सोती हैं
वोट मांगते हुए अपने भाषण में जनता को भगवान हैं बताते
चुनाव ख़त्म होते ही जनता इन्हे कीड़ा मकौड़ा नज़र आती हैं

पहले के कवि बेबाक लिखते थे इन नेताओ की करतूतों पर
अदम गोंडवी, हरिओम दादा खोल देते थे आंखे जनता की
सच लिखने को अब कवि इतनी हिम्मत भी नहीं जुटा पाते
नेताओं के नीयत की सच्चाई ना दौड़ती हैं इनके कागज़ पर

गर्व हैं मुझे इस मंच पर यहां लिखने की आज़ादी मिलती हैं
समाज के हर पहलुओं पर बेबाक सबकी कलम चलती हैं
नेताओं को जरा हमारी कविताएं कोई पहुंचा आना यारो
फिर देखना तुम उनकी आंखे कैसे खुद ही शर्म से झुकती हैं

✍🏻 ✍🏻 शिवोम उपाध्याय

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