नेता बदलते है, नियत नहीं

विषय – नेता बदलते है, नियत नहीं

बेख़ौफ़,आज़ाद मैं अपनी हर बात रखूंगी,
झूठ की दीवारों पे अब सच की सौगात रखूंगी,
भारत की नारी मैं,अब हर सवाल से दो-चार करूंगी,
सिंहासन बैठे राजा बन,उनकी नियत का व्यापार करूंगी।

सियासत की गलियों मे जो छल का बाज़ार करते है,
हर बार नया चेहरा लाकर खेल पुराना खेलते है,
कभी धर्म, कभी जाती का जो ज़हर घोलते है,
अब चुप नहीं बैठूंगी, एक आग की क़िताब लिखूंगी।

नेता बदलते पर नियत का रंग वही है,
कुर्सी की भूख मे आज देश का भविष्य गुम कहीं है,
सत्ता का नशा कुछ ऐसा हावी है इनपर,
बेशक,ये अपनी ही चका-चौंध मे मशहूर बहुत है।

नई शिक्षा नीति आई पर स्कूलों मे अनुशासन नहीं है,
युवा बेरोजगार और पेपर लीक की कोई बात नहीं है,
यहां भूख पे बहस नहीं,धर्म पे बबाल बहुत है,
संसद मे चर्चा के नाम पे होता बस शोरगुल है।

हर मंच पर नारी सम्मान के गीत गाते है,
बेटी बचाओ का नारा भी ख़ूब लगाते है,
पर,असल मे नारियों का सम्मान नहीं है,
अब नेताओं की आंखों मे भी दिखता छल बहुत है।

नई योजनाएं आती है पर कमीशन मे फंस जाती है,
जनता बेचारी बस आस लगाए रह जाती है,
बिजली 125 यूनिट फ्री है पर कटौती हर रोज़ है,
टंकी सुखी रहती पर वादों मे नमी बहुत है।

फसल के दाम कम,आत्महत्याएं जारी है,
बीमार देश और दवाओं मे लूट भारी है,
पर्यावरण का भी हो रखा कुछ ऐसा ही हाल है,
सड़कों के विकास के चक्कर मे यहां भी बुरा हाल है।

एक तरफ़ कहते देश का विकास हो रहा,
दूजी तरफ़ जनता का हक़ दबाया जा रहा,
तकनीकी विकास की तो बात मत ही पूछिए,
कभी चांद तो कभी मंगल पर खर्चा उड़ाया जा रहा।

ख़ैर,नेता बदलते है पर नियत की पहचान अब करनी होगी,
जनता को अब अपनी चुपी भी तोड़नी होगी,
वरना ये देश बस नारों मे सिमट कर रह जाएगा,
हक़,इंसाफ़,अधिकार बस किताबों तक सीमित रह जाएगा।

स्वरचित:
स्वीटी कुमारी ‘सहर’
(सेमीफाइनल राउंड)

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