प्रतियोगिता ‘ तंज़ की ताक़त ‘
विषय – न्यूज एंकर बनाम न्यूज
(द्वितीय चरण)
सच मे ख़बर है या कोई ड्रामा चल रहा,
एंकर गरज रहा और मुद्दा मर रहा,
स्क्रीन पे आग है और ज़मी पे सन्नाटा,
टीआरपी के चक्कर मे सच छिप रहा।
डिबेट के नाम पर तांडव का शोर है,
हर चैनल पर बे मतलब का ज़ोर है,
जिन्हें दिखाना था ज़मीनी दर्द का नक्शा,
वो बतियाते है कौन किसका प्रेमी है सच्चा?
महंगाई की कोई बात नहीं है,
बेरोज़गारी रोती है,पर वो ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है,
अभी बाढ़ और नदियों मे तूफ़ान है कहीं,
पर इसपे चर्चा करने को कोई तैयार नहीं।
सत्ता के रंग मे रंगे है कई चेहरे,
इन्हीं के आदेशों पर चलते है इनके चोंचले,
बस अपनी ही चर्चा ये ख़ूब करवाते,
हर मुद्दे को बस राजनीति से जोड़ते।
अब न्यूज नहीं एंकर का चेहरा चलता है,
सच से ज़्यादा मेकअप का ब्रश चलता है,
सच हाशिए पर बस तमाशा पलता है,
समझ नहीं आता सच और झूठ क्या है?
दर्शक भी अब ड्रामा के आदि हो गए है,
सच्ची न्यूज देखकर बोर हो गए है,
इसलिए तो आवाज़ कोई उठता नहीं,
सत्ता के बिके सब उसके चमचे हो गए है।
जब अधिकार सीमित है तो ये हाल है,
सोचो,ग़र होता अधिकार तो भूचाल है,
पहले शब्दों से क्रांति होती थी,
अब तो बस शब्दों मे दिखता शोर है।
ख़ैर, अभी मैं मौन हूँ, स्थिर हूँ,
अपने कुछ सवालों के जवाब मे हूँ,
पर जिस दिन ये मौन टूटेगा,
तब मेरे भीतर का ज्वालामुखी फटेगा।
स्वरचित:
– स्वीटी कुमारी ‘सहर’