*न्यूज़ एंकर बनाम न्यूज़*
चीख़ते मंच बिखरे संवाद अब न्यूज़ नहीं व्यापार है,
सच का शव जब जलता है एंकर बोले ये त्योहार है।
माइक उठाकर गरजें ऐसे जैसे खुद ही नेता हों,
आप बताइए कहकर फिर उत्तर भी वो ही देते हों।
सवालों की कब्र बनी है चैनलों की हर बैठक में,
हर बहस आग लगे है टीआरपी की भूख के बहस में।
ब्रेकिंग न्यूज़ चलती यूँ किसने क्या पहना है आज?
पर खेतों में जो जान गई उस पर कैसा ये ताज?
नेता का पालतू पंखा भी एंकर हाथों से खुद लहराए,
जवाब जो थोड़ा चुभ जाए वो तुरंत देशद्रोही कहलाए।
देशभक्ति अब बिकती है पैकेज में विज्ञापन सी,
जो बोले सच वो बाहर है बची बस हाँ में हाँ सी।
कभी टोपी कभी ताली स्क्रिप्ट लिखी तैयार है मिली,
हर मुद्दा रंगा झूठों से हर ख़बर में खौलती रही दिल्ली।
नेता हँसे कैमरे के आगे मुद्दे सब गायब हैं,
संविधान भी शर्माए अब इतने फरेबी हर साहब हैं।
बोलने वाले चुप हैं अब चीख़ों का ही दरबार है,
संवाद नहीं बस शोर है न्यूज़ रह गया एक किरदार है।
बौद्धिकता की हार हुई है ज्ञान वहाँ गूँगा है बैठा,
जहाँ तर्क की जगह भावनाओं का ज्वार है सजा बैठा।
सत्ता की गोदी में बैठा कलम उठाता डर-डर,
मीडिया अब आईना नहीं बना है बस चमचमाता घर।
दर्शक थका रोता अंदर पर स्क्रीन पर जो छाया,
सच का गला घोंट कहता है देखो कैसे देश मुस्काया।
©गार्गी गुप्ता
द्वितीय चरण