*न्यूज़ एंकर बनाम न्यूज़*
क्या है, जो अब जाना जाए,
और किसे सत्य माना जाए?
सब तो मन से हैं, बस बोलते,
और विपक्ष को हैं, बस रौंदते।
जनतंत्र का आधार है मीडिया,
जनता का आभार है मीडिया,
पर अब सब कुछ बदल गया,
मीडिया, आसानी से छल गया।
देशभक्ति पर वाद-विवाद हो,
रोज़गार के नाम पर खामोश हो,
यही है न्यूज़ आज का, मानो,
न्यूज़ एंकर की बात, बस मानो।
पहलगाम की घटना कौन भुला,
उसके बाद न्यूज़ में क्या मिला?
सब जानते हैं, क्या ही सच था,
मीडिया में भी बहुत ही छल था।
देख, आज के हालात , सब मौन हैं,
सच तो कब से ही खुद गौण है।
ख़ैर, इस बात की क्या ही चिंता,
न्यूज़ एंकर, बस सरकार के लिए बोलता।
रोज़गार, विकास और शिक्षा पर,
न्यूज़ एंकर कुछ बोलते नहीं।
क्या है डेटा, सरकारी जानते हैं,
पर अपनी ज़ुबां से, कभी बोलते नहीं।
जात और धर्म हावी हैं न्यूज़ में,
गोदी मीडिया फँसा है अब व्यूज़ में।
मीडिया का हाल, अब बदतर है,
अख़बार भी, आजकल कमतर है।
नेताओं की महिमा का गुणगान है,
साथ ही न्यूज़ में, सत्ता महान है।
देख, ऐसी दुर्दशा न्यूज़ की अब तो,
भारत भी खूब ही शर्मशार है।
ख़ैर, वक़्त बदलेगा, तो सब बदल जाएगा,
सच क्या है, खुद ही निकल जाएगा।
“शाह” है बहुत हिम्मत वाला शुरू से,
उसकी सोच क्या है, पता चल जाएगा।
स्वरचित:
*प्रशांत कुमार शाह*
द्वितीय चरण
पटना बिहार