प्रतियोगिता : दिल से दिल तक
ग़ालिब ”
कोई महल नहीं..
टूटा-फूटा घर हो चाहे… ग़ालिब !
तस्वीर मेरी चाहे गन्दी हो,
पर पल्लू से पोंछे जो, वो बस वो हो… ग़ालिब !!
इत्मीनान से रख लूंगा मैं भी,
जो व्रत उसका हो, चाहे जो हो… ग़ालिब !
मैं कई दिनों तक भूखा रह लूंगा,
बस खिलाने वाला हाथ, उसका ही हो.. ग़ालिब !!
उसकी उड़ती जुल्फें बहुत है,
तू तूफान की बातें ना कर… ग़ालिब !
मरना है तो, उसका जाना बहुत है,
तू खंजर, हतियार की बात ना कर… ग़ालिब !!
गुस्ताखी उसकी कितनी भी हो,
हर-पल बस प्यार बढ़ता रहें… ग़ालिब !
शक ना हो, मोहताज ना रहें वो,
रफा-दफ़ा हर बात फिर हो… ग़ालिब.. !!
हुस्न चाहे वो कितना भी बदले,
दिल बस ये ही रखे, जिसमें मैं हूँ.. ग़ालिब..!
समय चाहे फिर कितना भी बदले,
हम दोनों ऐसे ही रहें.. जैसे हैं… ग़ालिब…!!
कबीर को खुशी-ग़म सब मंजूर,
बस हर पल साथ,उसका ही रहे.. ग़ालिब..!
रूहानी इश्क़ सदा मुक़म्मल हो,
दिल मे प्रेम,और बस प्रेम रहे… ग़ालिब..!!
~kabir pankaj