प्रतियोगिता – दिल से दिल तक
विषय – ” प्रेम रतन धन ”
अंतिम सांस ले रही थी एक फूल
कि अचानक महका कोई हवाओं में गुल
धड़क उठा सीने में फिर एक दिल
आहट हुई आप हर हाल में हो हमें क़ुबूल ।।
कर ना पाएं उन हवाओं से किनारा
हो ना पाया उसके बिन गुजारा
जाने क्या वक्त की ज़िद्द थी कि
दिल ने बस उसी का नाम पुकारा ।।
एक दिन हुआ यूं ही प्यार की बातें
बोला एहसास है ये ना इज़हार की बातें
हां सहमत हैं हम इस जज़्बात से
दिल कहां करता इनकार की बातें ?
स्वप्न भी सच्चा बेशकीमती हक़ीक़त भी
बिना भाता ना जीवन का कोई सूरत भी
दुआ है बस सलामत रहे हमारा प्रेम
मिटे नहीं कभी दिल में बसी मूरत जी ।।
प्रेम शाश्वत है प्रेम मन का सरोवर
बहता रहता इसमें निर्मल कोमल तेवर
धीरे-धीरे गहरी भावनाएं पिरोता
उतरने लगता रूह में ये सबसे हो के बेख़बर ।।
हम कितना प्यारे हैं यह आपने बताया
दिल की धड़कन बनकर साथ निभाया
“प्रेम रतन धन ” पा लिया हमने
एक-दूजे के दिल में अब सुकून है आया ।।
सुमन लता ✍️
अल्फाज़ -e-सुकून