विषय – बचा लो इंसानियत वरना कुछ न बचेगा
कोने में पड़ी खाट उस पर बीमार बाप हैं
मां फ़ुख रही चूल्हा अंदर करुण विलाप हैं
बेटे बहू का चल रहा नित नृत्य का प्रोग्राम हैं
देख दशा ऐसी विधाता भी खुद परेशान हैं
पोता सोच रहा कि कब ये दुर्व्यवहार मिटेगा
प्रभु बचा लो इंसानियत वरना कुछ न बचेगा
घर से निकली बेटी बाहर भेड़ियों से अंजान है
पास आते दरिंदे देख हलक में उसकी जान हैं
सोच रही मोमिता निर्भया सा मेरा अब हाल है
कलयुग में है कृष्ण कहा इस बात का ज्ञान है
नारी की हालत देख कब ये क्रूर मानव बदलेगा
अब बचा लो इंसानियत वरना कुछ न बचेगा
संसाधनों की तलाश में जंगल खत्म हो रहा हैं
बेजुबानों का आश्रय उनसे जबरन छीन रहा हैं
रो रहा है बरगद देखो और दुःखी कितना आम है
कह रहे हैं वृक्ष भूल गया हमसे तुम्हारी सांस हैं
मिट गए हम तो पूरी धरा पर एक कोहराम होगा
हे मूर्ख बचा लो इंसानियत वरना कुछ न बचेगा
बैठी लेके तिरंगा गुड़िया गुम हुई उसकी मुस्कान है
रक्षक ही हैं अब भक्षक बने ये सोच वो परेशान हैं
भविष्य देख देश का वो बिटिया कितनी बेहाल हैं
जागो मेरे देशवासी निकली मन से एक आवाज हैं
नहीं तो इस पावन भूमि का भी नष्ट निश्चित होगा
हा अब बचा लो इंसानियत वरना कुछ न बचेगा
अवसाद हैं बढ़ा मस्तिष्क भी बेअसर हो रहा हैं
मोबाईल स्क्रीन से मानव खुद से दूर हो रहा हैं
युवा देख रहा हत्या फोन में कामुक फ़िल्में भी हैं
फेफड़ों में है धुआं भरा इसी में दिखाता शाख हैं
सुधर जा मनुज नहीं तो एक निवाले को तरसेगा
बन इंसान बचा इंसानियत वरना कुछ न बचेगा
✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय