प्रतियोगिता : शब्दों की अमृत
वाणी : सफलता की सीढ़ी
विषय : “बिना स्क्रीन की यादें”
भाषा: हिंदी कविता
बचपन की यादों में क्या दिन थे,
खुशियों की लहरों संग हसीन थे
अपनों का प्यार झलकता था,
बिजली गुल हो जाने पर भी संग थे
हर लम्हें में जैसे सतरंगी रंग थे.……
वो बारिश में भीगना बेफिक्री से,
कागज़ की नावों का समंदर हो जैसे
मिट्टी की ख़ुशबू में बसती थीं खुशियाँ,
हर गली, हर मोड़ कहानी से जैसे भरा
वैसे बचपन का जादू हर कोने में बसे…
दोस्तों संग खेलना दिल को छू जाता
उडीक होती सांझ की खेलने की उत्सुकता होती , खुशी की लहर चारों ओर होती अपनी बात मनवाने की हर दोस्त को तांग होती…..
बिजली गुल हो जाने पर छत पर जाना,
हाथों की पखी का हर कोई दिवाना
बिजली कब आएगी, उसके इंतज़ार में नींद आ जाना,ठंडी हवा में सपनों का झूले पर झूल जाना….
ना मोबाइल था, ना कोई स्क्रीन की रौशनी,बस तारों से बातें और झींगुरों की संगत होती वो अधूरी कहानियाँ, जो नींद में पूरी होती थीं, सपनों में परियाँ
भी अपने संग होती थी…..
बचपन की वो रातें, आज भी दिल को रोशनी देती हैं , गमी की लहर में भी
दिल को खुश कर जाती है,जिन्हें सोचकर आज भी आँखें नम सी हो जाती है….
©® Malwinder Kaur