ये नए ज़माने में देखो विभिन्न नए रिश्ते इज़ात हुए हैं,
हर रिश्ते में स्वार्थ छिपा है अधूरे सब जज़्बात हुए हैं,
कुछ दिन के लिए सावन के मौसम की तरह आते हैं,
ऐसे रिश्ते तो केवल स्वार्थ की मिट्टी से आबाद हुए हैं ।
देखता हूं ऑनलाइन दुनिया में इतने लोगों के मेले हैं,
लेकिन परिवार की भीड़ में रहकर भी लोग अकेले हैं,
कितनी दीदी कितनी बहने और भाई बना लेते हैं पर,
अपने कुल के साथ ऐसा व्यवहार कि जैसे सौतेले हैं।
ये रिश्ते कुछ दिन के चैटिंग और कॉल्स से भरे होते हैं,
कुछ समय के पश्चात यही मैसेज अनसीन पड़े होते हैं,
मैंने देखा है लोगों को रोते ऐसे ही अनजान रिश्तों पर,
देखा है कुछ लोगों को जो तन्हाई से भी लड़े होते हैं।
कुछ रिश्ते बनाकर लोग एक मुस्कुराहट को तरसते हैं,
अब सम्बन्धी भी अंगारों की तरह जिंदगी में बरसते हैं,
वो ज़माना जब , तन्हाई में खुशनुमा होती थी जिंदगी,
एक ज़माना है कि लोग भीड़ में भी अकेले तड़पते हैं।
दोस्तों के साथ मस्ती के पल बहुत ही नायाब होते हैं,
बच्चे नई उम्र में ही जब घर गृहस्थी से आजाद होते हैं,
जवानी में जब दिल मचलता है किसी कली पर मियां,
फिर तो इनके लिए सब मित्र हर रिश्ते नासाज़ होते हैं।
नई उमंगे उठ जाती हैं जवानी में नई उड़ाने भरता है,
उसकी हर बात सर आंखों पर पूरी ख्वाहिश करता है,
उसके हर एहसास को बना लेता है खुशी का आधार,
इसलिए वो महबूब के बिना भीड़ में भी तन्हा रहता है।
आज कल के आशिक़ क्या जानें वो खत का ज़माना,
जब सुर्ख स्याही से उतारा जाता था दिल का फ़साना,
उस ज़माने में , तन्हाई में मुस्कुराया करते थे आशिक़,
आज आशिकों को आता है तन्हाई में ग़मो का तराना।
हमने भी बनाए थे खूबसूरत रिश्ते दिल से निभाने को,
लेकिन कहां जिंदादिली पसंद आई कभी जमाने को,
हम भी तो कहते थे कि उसकी बात ही अलग है राव,
अब चेहरे पर मुस्कुराहट रखते हैं , तन्हाई छुपाने को।