भीड़ में रहकर अकेले हैं

प्रतियोगिता – तंज की ताकत
विषय – भीड़ के रहकर अकेले हैं
फाइनल राउंड

पिंजरे में बंद पंछी अब इंसानों पर हंसते हैं
खुद को तन्हा कर भीड़ में जबरन घुसते हैं
जब धक्का लगता हैं उन्हें जमाने से शिवोम
खुद को ही तब पिंजरे में बंद खुद वो करते हैं

दावा करते जो जो हैं यहां सब के सब मेरे हैं
असलियत में वो भीड़ में रहकर भी अकेले हैं
रावण राम दोनों रा से ही मिलकर बना हुआ
एक हैं अहंकारी एक सबके दिलों को जोड़े हैं

भीड़ में चलते चलते वो कहीं गुम हैं हो जाता
अपने वास्तविक रूप को पहचान नहीं पाता
फिसलने लगती हैं भीड़ जब रेत सी मुठ्ठी से
तब उसे भीड़ से होती घृणा खुद पे प्यार आता

भीड़ से भयभीत हैं भगवान भविष्य को सोचकर
भीड़ से भय मिले न मिले भाग्य थाली में परोसकर
भांति- भांति के लोग यहां भिन्न- भिन्न सबकी सोच
भाग्य उदय उसी का होगा जो चलेगा भीड़ से हटकर

जनकवि की सलाह मानो भीड़ को दरकिनार कर लो
चलो खुद नेक राह पर इंसानियत की चादर ओढ़ लो
खुद इस काबिल बनो कि भीड़ भी रुक कर सलाम करे
लिखों सच्चे लफ़्ज़ सच्चाई से जिससे दिलो को जीत लो

पुस्तकों में लिखी गूढ़ बात कभी ग़लत नहीं हो सकती
“जनेषु नित्यमेकत्वमेकान्ते सुखमेधते” से दिशा बदलती
एकांत की अनुभति से जीवन को नई दिशा भी हैं मिलती
भीड़ से हटकर चलने वालों को ही प्राप्त सफलता हैं होती

✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय

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