मन दोस्त या दुश्मन
आओ आज सभी को मन की बात बताते हैं,
अवस्था के अनुसार मन की लीलाएं दर्शाते हैं,
जैसी उम्र वैसी इच्छाएं होती जाती हैं मन की,
आज इसके रूपों को विस्तार से समझाते हैं।
बचपन में मन में बहुत सी लालसाएं जागती हैं,
ज्ञानेंद्रियां इस मन को विचलित कर भागती हैं,
प्रश्न उठता है मन में हर एक वस्तु को देखकर,
हर क्रिया मनोभाव में एक जिज्ञासा दागती है।
अलग -अलग क्रियाएं मन को अलग बांटती है,
बाल्य काल में उठी जिज्ञासा मन को काटती है,
मां जब देती जिज्ञासाओं में आए प्रश्नों के उत्तर,
खोखली बुद्धि को ज्ञान रूपी दिए से पाटती है।
चलो आओ अब बाल्यावस्था की ओर चलते हैं,
इसी उम्र से ही शैतानी के अल्पविकार चलते हैं,
मन में आ जाते हैं कई अच्छे बुरे ख़्याल हर पल,
शैतानी से सब को करूं परेशान विचार पलते हैं।
स्कूल के समय से ही इस मन के विचार बदलते हैं,
यह *मन दोस्त या दुश्मन?* यहीं से मन मचलते हैं,
मेरे पापा बहुत अमीर हैं तेरे पापा भिखमंगे गरीब हैं ,
मन में दुर्व्यवहार,कटुता, और घमंड सब पलते हैं।
जवानी में ही मन में भविष्य के आसार दिखते हैं,
रंगीन सी दुनिया में मन के कई व्यवहार दिखते हैं,
मन ले चलता किसी को उज्जवल भविष्य की ओर,
कई जुएं शराब में मस्त कई प्यार के बीमार दिखते हैं।
उसी उम्र में तो मन में प्यार के प्यारे फूल खिलते हैं,
मन और शरीर में सबसे अधिक बदलाव दिखते हैं,
कई निकल पड़ते हैं सतमार्ग से ब्रह्मचर्य की साधना में,
कई लिए होते हैं जर्जर सा शरीर और बर्बाद मिलते हैं।
ये मन दोस्त या दुश्मन? इसका निरीक्षण करते हैं,
माना हर उम्र में मन में अलग अलग विचार चलते हैं,
किंतु इन ज्ञानेंद्रियों पर विजय मन पर विजय जैसी है,
*मयंक* इसी मार्ग से मन के सभी विकार टलते हैं।