मन दोस्त या दुश्मन

हे मानव! मैं मन बस अपनी ही तुझपे मैं चलाता हूं ,
लोभ माया सही गलत के पहलू में तुझे फंसाता हूं ,
मेरी माया हैं बड़ी अनोखी मायाजाल मैं फैलाता हूं ,
कितने कठिन जतन करता तब मैं मन कहलाता हूं ।

धन बढ़ते ही तेरे पास, मैं लोभी मन बन जाता हूं ,
बुद्धि विवेक कुछ काम न करता अहंकारी तुझे बनाता हूं ,
भुला कर मान सम्मान माया की ओर तुझे ले जाता हूं ,
इतने कठिन प्रयासों से ही मैं पापी मन कहलाता हूं ।

क्या कहेंगे चार लोग मन इसी में तुम्हारा फंस जाता,
इसके उसके सब के मन की सोच कभी आगे न बढ़ पाता,
कभी न सुनने देता अपनी अंतरात्मा की आवाज़ शिवोम ,
जब हावी होता मस्तिष्क पर मन, कुछ सोचने भी ना ये देता ।

माना मैने मन तू हावी हैं इंसानों पर काबू भी पाया हैं ,
पर तुझे हराने का अध्यात्म ही एकमात्र सहारा हैं ,
इंद्रियों पर अपने काबू रख तुझसे जीता जा सकता हैं ,
ज्ञान का खोल के पिटारा तुझे कैद किया जा सकता हैं ।

दृढ़ निश्चय हो अगर शिवोम सब संभव हो जाता हैं ,
इरादा हो बुलंद तो हौसला देख मन भी घबराता हैं ,
देख हिम्मत तुम्हारी मन भी तुम्हारा मित्र बन जाता हैं,
फिर कभी तुम्हारी राह में कोई अड़चन नहीं वो लाता हैं ।

मन के मंसूबों पर आत्ममंथन विजय प्राप्त करता हैं ,
मन के हारे हार मन के जीते जीत ये सिद्ध करता हैं ,
“मनः सखा वश्यते सति, शत्रुः स्यात् अवश्यतः”
मन हो वश में अगर तो जीवन कितना सरल होता हैं ।

वाह मनुज तुमने मन को अपने समझ अब लिया हैं ,
मन के उतार चढ़ाव को पूर्णतः परख भी लिया हैं ,
मन की स्थिरता कितना जरुरी हैं जीवन में शिवोम,
मन को स्थिर कर जीवन की लौ को रौशन किया हैं ।

जज्बे को देख तुम्हारे लोभी मन हार स्वीकारता हैं ,
आगे से सही दिशा दिखाऊं ये प्रण आज ये लेता हैं ,
करूंगा तुमको आगे ,बनाऊंगा एक बेहतर इंसान
तभी कहोगे ये मित्र हैं मेरा ये सच्चा मन कहलाता हैं ।

बिल्कुल मन तुम कभी शत्रु थे आज परम मित्र हो ,
मेरे अंतरात्मा मेरे इस शरीर मस्तिस्क के निकट हो,
टूट चुके मुझमें अपार साहस भी तुमने ही भरा हैं ,
अब आत्मा के साथ ही मन की भी जय- जयकार हो ।

चाह हमारी ही होती हैं कि मन को कैसे चलाना हैं ,
फसना हैं मन के भंवर में या पार इसे कर जाना है,
देख तुम्हारी हिम्मत को मन तुम्हारे साथ हो जाएगा,
कहेगा मुझपे विजय करो हर मन जीत के आना हैं ।।

✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय

फ़ाइनल राउंड
प्रतियोगिता – बोलती कलम
अल्फ़ाज़ ए सुकून

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