प्रतियोगिता- (शब्दों की अमृतवाणी )
विषय – ” मेरा गांव मेरा छांव ”
सुन ओ मेरे चंदा मामा
आज पहना दो हमें बचपन का जामा
हम लौटना चाहते हैं उन्हीं हुड़दंग गलियों में
जहां कृत्रिम शोर नहीं प्रकृति का बसता है समां ।।
ओह ! छत पर भाई-बहनों के संग चंदा तुझे निहारना
फिर अचानक मां का हमें पुकारना
चाची का हमें परियों की कहानी सुनाना
याद आ रही दादी का बिखरे बालों का संवारना ।।
गांव की छांव की बरसात हो या हो गर्मी या सर्दी
इतना रोना ना होता था जितना शहर में है अभी
प्रकृति बदल – बदल कर हमें लुभाया करती थी
हम पर ना कोई एहसान जताया करती थी ।।
गांव में सड़क नहीं पगडंडी ही सही
गिरते-पड़ते आखिर एक-दूजे को संभालते थे सभी
हार जीत के बाद एक-दूसरे को गले लगाते
एकता की टोली क्या होती है हमें गांव बताते ।।
मेरे गांव की छांव की बात निराली
चारों तरफ दिखती है हरियाली ही हरियाली
मिट्टी में लोटपोट कर भी मन महका करता था
गुल्ली डंडा छुक छुक रेलगाड़ी जब चला करता था ।।
सुन चंदा छोटे से गांव में नहीं कोई अनजाना
संयुक्त परिवार में मिलता था अपनापन का खज़ाना
हम ढूंढ लेते थे छोटी सी छोटी बातों में खुशियां
लगता था हक़ीक़त सपना सभी सुहाना ।।
‘मेरा गांव मेरा छांव’ चंदा बहुत याद आ रहा
बचपन की कहानियां फिर से मन दोहरा रहा
वहां के खेल निराले और हंसी-ठिठौली
खेल – खेल में ही बनते थे जीवन रंगोली ।।
सुमन लता ✍️
अल्फाज़ -e-सुकून
प्रथम चरण
हुड़दंग -उछल कूद
समां – नज़ारा ,दृश्य
पगडंडी- पतला रास्ता