प्रतियोगिता – शब्दों की अमृतवाणी
विषय – मेहनत और किस्मत
जिम्मेदारी सर पर थी, पर शिकन माथे पे नहीं थी,
मजदूर था मजबूरी में, ज़माने की गालियां सही थी,
आँखों में उसकी चिंता के, आँसू झलक रहे थे,
पेट में दौड़ते चूहें, एक निवाले को तरस रहे थे,
सूरज तेज़ बरसा के,उसके धैर्य को परख रहा था,
दर्द का अथाह समंदर, उसकी आँखों से बरस रहा था,
ज्वर से तपता जिस्म, अब साथ छोड़े जा रहा था,
बच्चो की भूख मिटाने को, अपनी भूख को खा रहा था,
जिम्मेदारी वाले माथे पर, शिकन कहाँ टिकती हैं,
गरीबी और लाचारी तो, इनकी आँखों में दिखती हैं,
देख उसकी हिम्मत , हौसला और भी बुलंद हो गया ,
आधी देह पाकर भी, वो ख्वाब आंखों में संजो गया ,
क्या दर्द कहूं मै , उन भूख से रिसती आंखों का ,
अब किस्सा कैसे छेड़ूँ, उन अच्छे दिन की बातों का ,
मिल जाए एक निवाला , तो देह में कुछ जान आएं ,
देखकर भोजन की थाली , इस सूखी देह में प्राण आएं ,
लौट जाऊं फिर से , तपती धरा पर मजदूरी को ,
कौन समझेगा यहां , खाली पेट की मजबूरी को ,
अपनी मेहनत से धरती को आसमान बना देता हूं ,
खाली पड़ी जमीन को मै , मकान बना देता हूं ,
मेरे इन संघर्षों से , शायद मेरी भावी पीढ़ी तर जाएं ,
बदले वक्त तो शायद किस्मत , मेरे बच्चों की संवर जाए,
हट जाए मेरे अस्तित्व से , जो प्रश्नचिन्ह जड़े हैं,
मेरे ही दम पर तो वो मकान ,महल और इमारत खड़े हैं।।
पूनम आत्रेय
अंतिम चरण ,