न शिकायत खुद से है और न ही किसी ओर से
जब वक्त नहीं मददगार, तो क्या गिला किसी से
दर्द तो मुझको मिला है,
फिर क्यों होना रुसवा किसी से
किया नहीं है शिकवा किसी से,
न तुमसे और न ही खुदा से
जब से उसका साथ छूटा,
दिल से एहसास है टूटा
मैं भी शिकवा नहीं करती,
न समय से न सनम से
हर मोड़ पर बस खामोशी का साथ रहा
ना कोई अपना, ना पराया,
बस एक तन्हा जज़्बात रहा
हौसलों की चादर ओढ़,
चलती रही इस सफर में
ना शिकायत किसी राह से,
न डर किसी डगर में
जो गया उसे रोक न सकी,
जो आया उसे टोक न सकी
नसीब के इस खेल में मैं,
हर मोहर को देख न सकी
आँखों में अश्क जरूर थे,
मगर जुबां पे ना कोई शिकायत
दिल ने सीखा है अब बस,
हर दर्द में भी इनायत
छोड़ आई हूँ वो गिले,
जो खुद को ही तोड़ते थे
अब तो रिश्ते भी वही हैं,
जो ख़ामोशी में बोलते थे
सच है मैं कभी समय से शिकवा नहीं करती
काम करती हूँ अपने लिए और सबके साथ हूँ चलती
अदिति जैन
राउंड वन