प्रतियोगिता -( बोलती कलम )
विषय – “मैं समय से शिकवा नहीं करती ”
जो कुछ भी वक्त ने दिया वह कम नहीं
माना खुशियां थोड़ी सी थी मगर ग़म नहीं
है खुशनसीब इनके साथ क़दम चलते हैं मेरे
सच है ‘मैं समय से शिकवा नहीं करती’ ।।
उतार-चढ़ाव सदा लाती रहेगी ज़िंदगी
इसके साथ बनती रहे मेरी यही है बंदगी
क्यों सोचना बस वक्त का रोना है यहां
बस वक्त रहे अच्छा यह कैसी तिश्नगी ?
जब से जाना हर वक्त होता नहीं सुहाना
तब से होठों का दिखा मंद-मंद मुस्कुराना
मज़ा तो बुरे हालातों को ठीक करने में है
जीवन कभी गर्त तो कभी है मुहाना ।।
हो मौसम पतझड़ का या चिलचिलाती गर्मी
सह जाते लाते हैं इसी से व्यवहार में नरमी
मन तो नदी की तरह बहता ही रहता
नहीं करते दिल को बदलते मौसमों से ज़ख्मी ।।
सभी की अपनी कहानी है अपना है किरदार
जिसने भी दर्द दिया करते हैं उसका आभार
जानते हैं कुछ ना रखा इन शिकवा शिकायतों में
अपने किरदार में शिकवा रहे दिखाता नहीं आसार ।।
है विश्वास पूरा ख़ुद पर और वक्त पर भी
आलम कुछ भी हो रखेंगे ख़्याल सबकी
बस लेना ही नहीं देना भी आता हमें
सच है यह ‘मैं किसी से शिकवा नहीं करती’ ।।
सुमन लता ✍️
अल्फाज़ -e-सुकून
राउंड -1