प्रतियोगिता-‘बोलती कलम’
शीर्षक-“मैं समय से शिकवा नहीं
करती”
मैं समय से शिकवा नहीं करती…
क्योंकी उसने छीना कुछ भी नहीं,
बस वक़्त के साथ सीखा गया बहुत कुछ,
वो बचपना, वो नादानियाँ अब मैं करती नहीं।
इस भीड़ भरी दुनिया में कहीं खो जाऊँ…
किसी की बातों मे यूँ ही बहँ जाऊँ,
वो लड़की…अब मैं रही नहीं,
अब वो मासूमियत मुझमे दिखती नहीं।
वक़्त के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलना….
गिरना, संभलना फिर ख़ुद ही उठना,
पर कभी ना रुकना…
नदी की धारा की तरह बस बहते जाना।
मै समय से शिकवा नहीं करती…
क्योंकी उसने छीना कुछ भी नहीं हैं।
हाथों की लकीरें तो बहुत कुछ कहती हैं…
पर बिना मेहनत के वो भी कहाँ फलती हैं,
जब तक ठोकरें न लगें बार- बार…
तब तक मुक़द्दर का लिखा भी मिलता नहीं हैं।
कुछ सपने है उन्हें पुरा करना…
जो बीत गया…फ़िर से नही दोहराना हैं,
इस कलम की ताकत को अपना हथियार बनाना हैं,
वक़्त रहते बहुत कुछ कर जाना हैं।
मैं समय से शिकवा नहीं करती…
क्योंकी उसने छीना कुछ भी नहीं हैं।
✍️स्वीटी मेहता
राउंड वन
अल्फाज- ए- सुकून