मैं समय से शिकवा नही करती ,

प्रतियोगिता ~ बोलती कलम
विषय ~ मैं समय से शिकवा नही करती ,

ऐ ज़िंदगी पा लिया है सबकुछ मैंने चाहें था वो प्रतिकूल वक्त मेरा ,
किया है सामना हर परिस्थितियों का वो समय था बड़ा ही सख्त मेरा ।

जीवन के सफर में हर पड़ाव की मुश्किलों को हँसकर पार किया ,
कुछ मिला , कुछ छुटा मगर बड़ी ही बेसब्री से इंतजार किया ।

वही दिया मुझे मेरे प्रभु ने जो था मेरे हिस्से का ,
अब समय से कैसी शिकायत पा लिया है अपने हिस्से का ।

वक्त पर वक्त को जाना , हर उम्र का महत्व पहचाना ,
बचपन बीता दादी – दादी की पनाह में ,जवानी के दिन कटे प्यार की चाह मैं ।

अब समय ने ली है करवट , व्यस्थता के चलते फुरसत नही रहती ,
मैं भी कस लेती हूं कमर , मुझे भी वक्त से शिकायत नही रहती ।

वक्त भी बहुत कमाल करता है, जिंदगी में अपना किरदार बेमिसाल रखता है ,
देता हे ज़ख़्म हरे हरे तो वक्त के साथ ही हर ज़ख्म हलाल करता है ।

ऐसे चलता है समय का चक्र बदल जाता है इसके फेर से हर कोईं ,
मिल जाता है कर्मो का फल बच नही पता राजा या रंक हो कोई ।

अहंकार में कितने ही हो जाएं हम चूर और मगरूर ,
मगर जब पड़ती है वक्त की मार टूट ही जाता है सारा गरूर ।

आज भी मैं समय से शिकवा नही करती उसे तो चलते रहना है हर बार ,
निरंतर नदी की तरह बहना है चाहे राह में रुकावट आए हजार ।

वक्त का क्या है इसे तो घड़ी की सुइयों की तरह आगे बढ़ते रहना है ,
हमे कदम से कदम मिलाकर इसके साथ चलना है वरना पीछे छूट जाएगा संसार ।

कल को मैं पारुल कलम उठाकर जब भी लिखती थी कलम रुक सी जाती थी ,
मगर अब वक्त का मिला मुझे तोहफा जो जी चाहता है शब्द उकेर लेती हूं ।

भर जाता है पन्ना भावनाओं से , दिल मे उमड़ने लगते है जज़्बात ,
ऐसा लगता है मानो मैं नही वक़्त लिख रहा है मेरे साथ ।

®©Parul yadav
Round one

Updated: May 4, 2025 — 6:45 pm

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