मैं इंडिया गेट हूं…
मैं खड़ा हूं चुपचाप, पर मेरा हर पत्थर बोलता है,
हर नाम जो मुझ पर उकेरा है, वो शहीदों की रूह टटोलता है।
ना मुझे नींद आती है, ना कोई शिकायत है मुझे,
मैं तो बस वतन की मिट्टी में अमरता की गवाही हूं।
सांवली रातों में जब रौशनी तिरंगे की छूती है,
तो मेरे सीने में फिर एक बार शौर्य जाग उठता है।
हर बच्चा, हर बुज़ुर्ग जो मेरी छांव में आता है,
वो अनजाने ही मेरी कहानी का हिस्सा बन जाता है।
यहां कोई सेल्फी लेता है, कोई श्रद्धांजलि चढ़ाता है,
मगर मैं सबको एक ही नजर से देखता हूं—
ना धर्म, ना जात,
बस एक नाम भारतवासी।
मैंने देखा है, माताएं बेटे खोती हैं पर सिर ऊँचा रखती हैं,
मैंने सुनी हैं वो चुप्पियां, जिनमें देश सबसे ऊंचा होता है।
मैं एक गवाह हूं, एक वादा हूं,
मैं सिर्फ पत्थर नहीं —
मैं वो आस्था हूं, जो हर दिल में तिरंगे की तरह लहराती है।
जब-जब कोई शपथ लेता है देश के लिए जीने-मरने की,
मैं उसकी आँखों में वही ज्वाला देखता हूं जो सुभाष के सीने में थी।
जब कोई फौजी लौटता है लहू में लिपटा हुआ,
मैं उसकी चुप मिट्टी को अपनी छाती से लगाता हूं।
🙏🇮🇳 जय हिंद 🇮🇳🙏
(द्वितीय चरण )
— लब्ज़ के दो शब्द (ऋषभ तिवारी)