*मोहब्बत का लॉगआउट*
मोहब्बत का लॉगआउट कर दिया आज,
जिससे जुड़ी थी रूह… उसे अलविदा कहा आज।
न इमोज़ी, न टेक्स्ट, न कोई कॉल,
बस दिल के नेटवर्क से हट गया वो हाल।
जिसे बचाकर रखा हर टूट से मैंने,
वो ही छोड़ गया मुझे भीड़ के इस कोने में।
जो हर रोज़ मेरी सुबह की दुआ था,
अब वही मेरी तन्हाई का सबब बना।
दर्द की नोटिफिकेशन अब रोज़ आती है,
खुशियों की प्रोफाइल बस पुरानी सी लगती है।
दिल की चैट में अब सिर्फ सीन है,
“पढ़ा गया” लिखा है, पर समझा कभी नहीं गया।
तन्हा रातें पूछती हैं — पासवर्ड क्या था उस प्यार का?
शायद “एतबार”… जो अब रिसेट नहीं होता।
जुदाई ने लॉगिन किया जब मेरी हसरतों में,
तब से उम्मीदें भी ऑफलाइन हैं मेरी आदतों में।
ब्लॉक तो कर दिया दुनिया से खुद को,
पर यादें अब भी स्क्रीन शेयर कर लेती हैं मन को।
हर एक चैप्टर डिलीट किया, फिर भी,
“हम” वाला फोल्डर कचरे में नहीं गया अब तक अभी।
जिसके लिए सारी सीमाएँ पार की थीं,
उसने ही ‘सीन’ कर अनदेखा कर दीं बातें सारी थीं।
अब दिल की बैटरी लो चलती है हर शाम,
क्योंकि तेरा प्यार ही था वो चार्जिंग-वाला नाम।
तेरी आँखों की गलियों में अब ट्रैफिक नहीं,
पर हर मोड़ पर तेरा जिक्र मिल ही जाता कहीं।
हमने मोहब्बत को सहेजा था जैसे ऑफलाइन ड्रॉप्स ,
वो तो गया पर पीछे छोड़ गया… अधूरे क्राफ्ट्स।
अब “खुश रहो” का स्टेटस देख मुस्कुरा लेते हैं,
पर आँखों में आँसू अपडेट हो जाते हैं।
काश कोई अंडो बटन होता रिश्तों में भी,
जहाँ गलती का पछतावा खुद एडिट कर पाता सभी।
तू लॉगआउट तो कर गया मेरी दुनिया से,
पर मैं आज भी तेरा ओटीपी ढूंढ़ती हूँ तन्हा सी।
बस यही सच है इस वर्चुअल मोहब्बत का,
जहाँ स्वाति की रूह थी, पर सिग्नल बस झूठा था।
स्वरचित:
✍🏻✍🏻Swati singh