*मोहब्बत का लाॅगआउट*
मोहब्बत कभी अल्फ़ाज़ में बसती थी,
अब स्टिकर और रील में सजीव होती है।
पहले जज़्बात चुपके से दिल में उतरते थे,
अब सीन और टाइपिंग… में ज़िन्दगी कटती है।
कभी एक मुस्कान, पूरे दिन की राहत थी,
अब लास्ट एक्टिव देख, बेचैनी की आदत सी।
जिसे चाहा था रूह से — वो एक डीपी बन गया,
और मैं बस वाई-फाई की स्पीड पर निर्भर रह गई।
कभी चिट्ठियाँ भीगती थीं आँसुओं से,
अब चैट्स क्लियर हो जाती हैं हर झगड़े पे।
पहले अलविदा का मतलब ताउम्र की दूरी था,
अब ब्लॉक का बटन सब हल कर देता है।
कभी “तेरे बिना अधूरी हूँ मैं” कहा था,
आज उसी के बायो में सेल्फ-लव ओनली लिखा है।
जिन वादों पर उम्र कुर्बान कर दी थीं,
अब वो वादे बस आर्काइव में पड़ी फाइलें हैं।
हाँ, मैंने भी किया लॉगआउट, लेकिन अचानक नहीं,
हर दिन खुद को लॉग ऑफ करते देखा है।
हर नोटिफिकेशन पर उम्मीद जगी, फिर टूटी,
और हर रात, मैंने लास्ट सीन से बातें की हैं।
अब इश्क़ नहीं, एयरप्लेन मोड सुकून देता है,
क्योंकि वहाँ कोई जवाब का इंतज़ार नहीं होता।
और मोहब्बत…?
वो अब भी है शायद, बस ऑफलाइन ड्राफ्ट्स में पड़ी है कहीं।
अब रिश्ते म्यूट हो जाते हैं एक क्लिक से,
दिल की बेचैनी पढ़ नहीं पाता कोई एल्गोरिदम से।
जिसने कहा था — “हमेशा साथ हूँ मैं”,
वो आज भी ऑनलाइन है, पर बात नहीं होती।
कभी उसका नाम रूह तक गूंजता था,
अब यूज़रनेम बदल जाने से पहचान भी खो गई।
हमने जो पल जिए थे दिल से,
वो उसने सिर्फ स्टोरी हाइलाइट में रख छोड़े।
कभी वो टाइपिंग… के तीन डॉट्स में साँसे अटकती थीं,
अब नो मैसेजेज़ येट कहकर दिल बहलाते हैं।
जिसे डिलीट नहीं कर सके थे तस्वीरों से,
उसे अब गैलरी खुद ही ऑप्टिमाइज़ कर देती है।
©गार्गी गुप्ता