” मोहब्बत का लॉगआउट ”
सर पर एक बोझ हो गया है,
रूहानी इश्क़ जैसे खो गया है…
मैं सवाल का जबाब ढूढ़ता हूँ,
क्या इश्क़ भी दिखावा हो गया है…
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हर कोने मे एक बीमार हो गया है,
इश्क़ इश्क़ नहीं बबाल हो गया है…
हीर रांझे का ये हाल हो गाया है,
ज़िस्म पाना ही प्यार हो गया है…
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कौन ‘जॉन साहब’बनना चाहता है,
हालत के साथ महबूब बदल जाता है..
फ़िल्मे देख देख कर ये हाल है,
इंस्टा पे सच्चा प्यार मिल जाता है…
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तकनिकी इसतरहा हावी हो गयी,
प्यार का अपग्रेड वर्जन मिल जाता है…
पैसा हो तो सब नुक्स दब जाता है,
दिलसे इश्क़ भी लॉगआउट हो जाता है…
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खैर हम ठहरे आदम ज़माने के वासी,
ज़िस्म नहीं रूहानी इश्क़ ख़ोजते है…
कबीर’ पागल कहते,हम गजले लिखते है,
दुनियां खफ़ा है,दुनियां से नहीं लगते है….
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हम लब्ज की हेरा फेरी नहीं कर पाते है,
दस्तूर ए दुनियां,हिसाब से बदले नहीं है..
झूठ फरेब का जरिया बन गया इंटरनेट,
कमाल ये है की, नकाब बहुत बिकते है…
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बिडंबना देखो इंटरनेट पे हजारों दोस्त है,
और लोग डिप्रेशन में ख़ुदकुशी कर लेते है…
समझ नही आता जज़्बात सस्ते क्यों है,
और फ़ोन इतने-इतने महंगे क्यों हो गए है…
~kabir pankaj