प्रतियोगिता -तंज की ताकत
विषय -मोहब्बत का लॉग आउट
अति चतुर थी प्रीति हमारी, जग की हर रीति पर भारी ,
मन का एक संकेत-पत्र था, हृदय में अंकित छवि तुम्हारी,
हृदय पटल पर नाम था तेरा , तुझसे ही था सांझ सवेरा,
बड़ा अनोखा अनुराग था , जू सृष्टि ने रंग बिखेरा ,
अकस्मात् एक दिवस था आया, बंधन पर था कलुषित साया,
सूत्रपात में दोष नही था, पर संजाल शिथिल हो आया ,
संदेश-पेटिका खाली पाई, भावनाओं पर बदली छाई,
पठित सूचना तो आई थी , प्रत्युत्तर पर दे नहीं पाई ,
निषिद्ध सूचियां खोज खोज कर, मौन-सूची में जा पहुँचे थे,
किसको कोसे, दोष किसे दें , असमंजस में आ पहुंचे थे,
हर्ष की नीति बदल गई थी ,अवसाद की रेखा पैठी मन में,
वो प्रेम ही शायद तंज भरा था, अब ना कोई प्रभाव था मन में,
स्फुट-मंडल रहा देखता , किंतु वार्ता मौन हो गई ,
लॉगआउट था प्रेम का ऐसा, चेतना तक भी गौण हो गई ,
कथा प्रेम की रही अधूरी, कर ना पाया हृदय सबूरी,
कोई संगणक नाप ना पाया , हृदयों में थी कितनी दूरी ,
स्वर्णिम दृश्यवार्ता के दिन, अब हास्यरंग में बदल गए थे ,
शुभप्रभात-शुभरात्रि दोनों, दूरभाष से निकल गए थे ,
मिथ्या वचनों ने हृदय में , हलचल एक मचा रखी थी ,
प्रेम में वो षडयंत्र रचेगा , जिस निष्ठुर से प्रीत लगा रखी थी,
प्रेम के वो संदेश घनेरे , पड़े पटल पर सिसक रहे थे ,
जिनका था अस्तित्व नगण्य, उन सायों से लिपट रहे थे ,
सम्बन्धों के वार्तावृत्त में, अब निस्तब्धता बड़ी है भारी,
उस प्रेम का अब निष्कासन हो गया, जिनसे प्रीति जुड़ी हमारी,
हमने बोला दुखित हृदय से, फिर से लौट चलो जीवन में ,
कैसा प्रेम कौनसा साथी , चलो आकलन कर लो मन में ,
अंत हो गया उस प्रथा का , जिसमें होती थी प्रेम की पूजा ,
झटक चित्त को किया है चिंतन, फिर से प्रेम मिलेगा दूजा ।।
-पूनम आत्रेय
प्रथम चरण