*नमन अल्फ़ाज़ a सुकून मंच* 🤗
*प्रतियोगिता – तंज की ताक़त*
*टॉपिक – मोहब्बत का लोगआउट*
सच कहूं तो मोहब्बत को वो मज़ाक बना दी__
बहुत क़रीब आकर वो, मुझे अपनी ज़िंदगी से लॉगआउट कर दी_!
अब डर लगता है किसी को भी अपना कहने की __
हिम्मत नहीं मुझमें फिर से वो सब कुछ दोबारा सहने की।
जानती थी वो,मेरे लिए कितना ख़ास थी_
सब रिश्ते थे पास पर उसकी अलग ही बात थी ।
जान जान कहके मेरी जान ले गई _
मुझसे मेरे ख़्वाबों का सारा अरमान ले गई।
अजनबी हुए हैं आज उसके लिए हम, जो कभी जान कहा करती थीं _
याद नहीं उसे कुछ आज, पहले कितना वो हमारे लिए पागल रहती थी।
कुछ यादें, कुछ उसकी निशानी आज भी सबसे छुपा रखा है _
है किसी की अमानत, सबसे यहीं बता रखा है।
वो कॉलेज की मोहब्बत आज भी मुझे रुलाती है _
सच कहूं तो लब खामोश, और आँखें बस भर आती हैं।
उसके लिए क्या नहीं किया, छोड़ा सारे बचपन के दोस्तों को __
सबसे दूर कर वो, भूल गई मेरे ही हर रिश्तों को।
वो कहानियां हमारी आज बस डायरी तक सीमित रह गई _
फार न पाई में एक भी पन्नो को, यादों को आज भी नहीं जला पाई।
दूख होता है आज भी, मैं इसे नहीं जानता जैसी वो आज हो गई है _
जला कर सारी मेरी यादों को, वो अपनी दुनियां में कहीं खो गई है।
बढ़ गई कई मिलों दूर हमसे वो, देखो न मैं आज भी वही खड़ा हूं__
संभाल न पाया ख़ुदको, मैं खुदसे ही इतना बिखरा हूँ।
रोया इतना तेरी यादों में अब आंसु भी कहां निकलते हैं _
ज़माना हुआ ख़ुदसे मिला, हम कहां खुदसे मिलते हैं।
अब बस उसकी यादों से कोई मुझे निकाल ले , मैं भी जीना चाहता हूं __
रोज़ रोज़ ये उदासी ठीक नहीं, मै भी अब खुश रहना चाहता हूं।
क़िस्मत में नहीं तो यादों में क्यों घर बना रखा है __
सच कहूं तो एक लड़की ने मेरी दुनियां, उजाड़ कर रखा है।
वो ख़्वाबों में ही आती है आज भी, अपना हक जाता जाती है __
जब खुले नींद तो वो हवा की तरह गायब हो जाती है।
सिसकते है लब मेरे जब भी उसको सोचता हूं __
फ़िर याद आता है, मैं क्यों इतना उसको सोचता हूं।
सच कहूं तो मोहब्बत को वो मज़ाक बना दी__
बहुत क़रीब आकर वो, मुझे अपनी ज़िंदगी से लॉगआउट कर दी_!
*शारदा ठाकुर बिहार*