विषय – रोटी कपड़ा और मकान
मिलते धक्के और ताने समाज के सब सहना पड़ता हैं,
गिर जाओ अगर तो फिर उठ खुद से चलना पड़ता हैं ।
हसेंगे सब जब तरसोगे तुम एक रोटी के लिए शिवोम,
रोटी कपड़ा मकान के लिए खुद को घिसना पड़ता हैं।
गुज़ारिश हैं खुदा से मेरी मुझको इतना आशीर्वाद दे,
दे सकूं किसी को खुशियां इतनी नेमत मुझपे वार दे।
देख अर्धनग्न काया और भूखे बच्चों को रोना पड़ता हैं ,
रोटी कपड़ा मकान के लिए कितना सहना पड़ता हैं ।
हालत देख के गांव के अपने मैने मशाल अब उठाई हैं,
स्वावलंबी हो अब हर बच्चा रब से आश मैने लगाई हैं ।
पहलू हो सब के सामने इसलिए मुझे लिखना पड़ता हैं ,
रोटी कपड़ा मकान के लिए कितना तपना पड़ता हैं ।
कितने संघर्षों से पाला हैं तुमको तब रोटी तुमने पाई हैं ,
अपना तन को देखे बिना तुमको चादर उसने ओढ़ाई हैं ।
जिस मकान में तुम रह रहे उसमें खून पसीना लगता हैं ,
रोटी कपड़ा मकान के लिए घर से निकलना पड़ता हैं ।।
✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय