विषय : सखी,वो कह कर जाते…
दिल ए मकां सुना,ख़्वाब सताते हैं
बेचैनी का घर,मेरा पता बताते है…
किस ओर ढूंढू, हर राह टकती है,
तुम चले गए,कोई पहेली लगती है…
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दर्पण से मेरी बातें,रातें काली है,
चुप्पीयाँ चीखती, तुझे पुकारती हैं…
दिन प्रतिदिन ओर टूटती जाती मैं,
अच्छा होता,सखी,वो कह कर जाते…
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कोई वादा कर,इरादा बता कर जाते,
खिले है जो पुष्प,उन्हें बहलाकर जाते…
बेचैन नैन में नीर का ढूढ़ला हटा जाते,
इकाएक मुझे नीद से उठा कर जाते…
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तुम्हारे विरह मे जोगन हो गयी हूँ मैं,
खुदको खोजती, तुम में खो गयी हूँ मैं…
तुम्हे आभास है..क्या बीतती है मुझपे,
सावन की बुंदे आग सा झूलसाती है मुझे…
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सजना सवरना तो मैं भूल गयी हूँ,
उपवन की तितली,उड़ना भूल गयी हूँ…
चेतना खोई संज्ञाहीनता हो गयी हूँ मैं,
अब दर्पण भी पूछता,क्या जिन्दा हूँ मैं…
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तुम लौट आओ, अब जीना दुसवार है,
आँखों में सागर, मुझे डुबाने तैयार है…
कबीर तुम तो सबसे प्रिय कहते थे मुझे,
देखो ना अब विरह मे मेरा क्या हाल है…
~kabir pankaj
सेमीफाइनल