प्रतियोगिता….. काव्य का आर्दश,
विषय…. वो तोड़ती पत्थर,
भाषा…. हिंदी, कहानी
विधा….. स्वैच्छिक काव्य, ज्ञान,
राउड… टू
औरत की महानता है, करती है हर कार्य,
धूप न देखे न छाँव न देखे, करती है हर कार्य,,
तपती धूप में सुलझती, फिर भी किसी के न कुछ कहती,
दिन रात व मेहनत करती, फिर भी सब कुछ सहती है,,
करती है सुबह व शाम, वह पेट के खातिर सब कुछ करती,
हाथों से मजबूर दिन रात व, न थकती, फिर भी चमक व लाली,,
चेहरे के चमक वही है, जैसे मेहनत का ‘ व नूर है,
चेहरे पर सिकन तक न आने देती, वो तोड़ती पत्थर,,
हाथों के पड़े हुए छाले को देख, उसके आगे मेहदी का व रंग
फिके रह जाते, मेहदी की चमक,, वो तोडती पत्थर,,
धूप छाँव न देखे व रंग, वह तोड़ती पत्थर,
एक तरफ रोते बिलखते बच्चे को देख,
कर जाती है हर सितम, वो तोड़ती पत्थर है,,
दिन रात मेहनत करती, अपनो बच्चों का जीवन
को रोशन करने के खातिर, वो तोड़ती पत्थर,,
औरत की महानता दे खो, कर जाती है हंस कर
कार्य, वो तोड़ती पत्थर,,
जीवन का हर सर्घष झेलती, वह तोड़ती पत्थर,,
सुख और दुख के साये, हर पल में जीती,,
वो तोड़ती पत्थर,, औरत की महानता देखो,,
कर जाती हर कार्य,, वो तोडती पत्थर,,
स्वरचित… खुशबू वर्मा
आगरा🖊️🖊️