प्रतियोगिता:- “शब्दों की अमृतवाणी”
विषय:- “मेरा गाँव और बचपन के दिन.”
ना जिम्मेदारी,ना फर्ज,
ना समझदारी, ना कर्ज,
फिर भी सब में अपनापन था,
कितना खुबसूरत वो बचपन था ।
ना दिलों का टूटना, ना कोई बैर,
ना किसी की फिक्र, ना कोई कैर (परवाह) ,
ना कभी महसुस हुआ सूनापन था,
कितना खुबसूरत वो बचपन था ।
ना कभी कुछ बोला, ना पडी मार,
माँ- पापा हमसे हमेशा करते थे प्यार,
कभी जो पड़ती मार, तो रूठ जाते थे हम,
जब कोई ना मनाता हमें…तो खुद ही मान जाते थे हम,
इस रूठने-मनाने के बीच भी,
कभी ना महसुस हुआ अकेलापन था,
कितना खुबसुरत वो बचपन था ।
वो मोहल्ले की छत पर एकत्र होना,
वो प्यारे प्यारे हमारे मित्र होना,
गाँव में जब भी कोई काम हो,
सभी मित्रों का उस प्रसंग में सर्वत्र देना,
कमियाँ होने के बावजूद, गाँव में हर कोई संपन्न था,
कितना खुबसुरत वो बचपन था ।
वो ढलती शाम, वो पूनम का चंदा,
कभी लगता हमें खुबसूरत सा-कभी हम कहते गंदा,
वो मिट्टी की खुशबु, वो गली में खेलना,
कभी कभी हमें मस्ती में, बहुत कुछ पड़ता था झेलना,
जानवरों को हाथों से खिलाने पर भी,
ना लगा कभी बेगानापन था,
कितना खुबसुरत वो बचपन था ।
अब ना जाने वो बचपन के दिन कहाँ खो गए,
ना जाने कब हम इतने बड़े हो गए !
अब जिम्मेदारी और फर्ज भी है,
समझदारी भी है और कर्ज भी है,
एक दूसरे की किसी को परवाह नहीं,
और एक दूसरे से बैर भी है ।
सोचकर आज इन सभी बातों को,
आज दिल में महसुस हुआ रुखापन था,
कितना खुबसुरत वो बचपन था ।
कितना खुबसुरत वो बचपन था ।
✍️अखिल त्रिखा.
नए शब्दों का अर्थ- ( उर्दू शब्द )
फर्ज – कर्तव्य
कर्ज – उधार
बेगानापन – परायापन
झेलना – सहन करना, बर्दाश्त करना.