शब्दों से बदलाव

सीरीज 1 प्रतियोगिता 2
शब्दों की ताकत : कलम से आवाज़ तक
प्रतियोगिता टॉपिक : “शब्दों से बदलाव”
चरण : फाइनल
रचयिता : सुनील मौर्या

“शब्दों से बदलाव”
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देखें तो, सदियों पुराने हैं यह शब्द और
इन्हीं शब्दों ने, बदली हैं हम सबकी सोच।

लिखने, बोलने, पढ़ने से, हमारे व्यवहार
हमारे छवि, हमारे चरित्र को ये दर्शाते हैं।

जो सुन ले, उसकी सोच बदल जाती है,
जो पढ़ ले, उसकी दिशा सँवर जाती है।

कभी होंठों से निकला हुआ एक स्वर भी,
अन्याय की नींव को हिलाकर रख देता है।

तो कभी किताब में लिखी हुई एक पंक्ति,
सदियों के अंधविश्वास को मिटा देती है।

कभी यह भूले-भटके समाज को जगाते हैं,
तो कभी टूटे रिश्तों को वापस जोड़ जाते हैं।

भेदभाव की आग को इन्होंने ठंडा किया है,
और बराबरी की मशाल दिलों में जलायी है।

ग़रीब की झोपड़ी में एक उम्मीद जगाई है,
वहीं अमीर के दिल में एक संवेदना जगाई है।

जब किसी की आवाज़ें, दबा दी जाती हैं,
तो यह सन्नाटे को भी बोलना सिखाते हैं।

एक सवाल से सोच की दिशा बदल जाती है,
एक कहानी से कई पीढ़ीयाँ सँवर जाती है।

जहाँ डर हावी हो, वहाँ साहस बन जाते हैं,
जहाँ नफ़रत हो, वहाँ विश्वास बन जाते हैं।

इनसे ही चलता है, बदलाव का कारवाँ,
इनसे ही बनता है नए समाज का नक़्शा।

सच का साथ मिले तो ये चमत्कार कर जाते हैं,
बंद दरवाज़ों को खोलकर नई सुबह दिखाते हैं।

यही तो हैं, असली ताक़त हर समाज की,
कलम से निकलकर बदलते, इतिहास की।

पर सावधान! जब ये ग़लत राह पकड़ लेते हैं,
तो घर, समाज और देश—सब ढह जाते हैं…

सुनील मौर्या

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