प्रतियोगिता : शब्दों की अमृतवाणी
कविता : संघर्ष से संकल्प तक
रचयिता : सुनील मौर्या
चरण : फाइनल
आधारित. : चलचित्र
परिचय : ज़िंदगी की असली ताक़त दौलत या शरीर में नहीं, बल्कि उस जज़्बे में है जो हर हालात को जीत में बदल देता है। यही जज़्बा है — संघर्ष से संकल्प तक..
संघर्ष से संकल्प तक
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ठेले को खींचता एक बूढ़ा इंसान,
पसीने में लिपटा, उसका जीवन,
ख़ुद से कहीं ज़्यादा था भारी समान,
उससे ज़्यादा था, मन का संकल्प।
दिखा, एक बिना हाथों का इंसान,
पैरों से थामे था, जीवन की लगाम,
कैसे ट्रैक्टर की तेज गड़गड़ाहट में,
गूँज रहा था, उसका साहस महान।
जब एक भूख से कांपते होंठों पर,
किसी ने हाथों से इक थाली सजाई,
मानवता की उस छोटी-सी लौ ने,
उसके अंधेरे में, इक रोशनी जगाई।
दिखे कारीगर ईंटों को जोड़ते,
किसी के सपनों की नींव रखते,
पसीने के संग वो खड़ी इमारतें,
कितनों को आश्रय, देती जातीं।
कहीं बहता है, धन का सैलाब,
कहीं तिनका-तिनका जोड़ते लोग,
शायद यही है जीवन का सच,
जहाँ हर राह का अलग है योग।
एक गरीब बच्चे ने शीशे में देखा,
ख़ुद की परछाई को बदलते हुए,
ग़रीबी से उठ, ज्ञान के बल पर,
दुनिया में अपनी जगह बनाते हुए।
जवान होकर देखा ख़ुद को शीशे में,
सोचे, कल कौन-सा रूप बनेगा मेरा?
पढ़ाई पूरी करके कौन-से द्वार खुलेंगे,
क्या सब बदल जाएगा, होगा नया सवेरा?
पढ़ाई ख़त्म हुई और मिली नौकरी,
तनख़्वाह मिलने के बाद वो सोचे है,
ज्ञान से पाया हुआ धन अनमोल हैं,
अब कहाँ करना उसका उपयोग है।
यही अहम प्रश्न, हर जीवन का है,
यही सफर, अमूमन हर राही का है,
संघर्ष से संकल्प तक की यह डोर,
ले जाती सपनों से हकीकत की ओर..
सुनील मौर्या