प्रतियोगिता – बागवान
विषय – सबका इंतजार करती मां
सबको भोज खिला कर खुद भूखी सोती मां
घर में सब जब सो जाते चुपके से हैं रोती मां
बूढ़ी आँखें रास्ता देखें अपने लाल दुलारों का
बैठकर दहलीज पर सबका इंतजार करती मां
जन्म देने को तुझे प्रसवपीड़ा भी हैं वो उठाती
बनाकर आंचल का अपने झूला झुलाती हैं मां
तेरा बचपन संवारने में अपनी जवानी गंवा देती
बिन कुछ बोले भी तेरी हर बात समझती हैं मां
घर में जो कभी उलझने लगते हैं रिश्ते शिवोम
फ़िर हौले से कर देती हैं जाकर तुरपाई भी मां
जीने की कला हर गुण बारीकियां भी हैं बताती
फिर भी करती नहीं कभी कोई अहंकार हैं मां
सबका इंतजार करती मां खुद को भूल हैं जाती
पर समय के काल चक्र को बदल नहीं पाती हैं मां
वृद्धाश्रम में भी वो बेटों के लिए दुआएं ही मांगती
इसीलिए मैं कहता भगवान से बढ़कर होती हैं मां
दो भाइयों के तकरार का हिस्सा बन जाती हैं मां
उसके सामने उस आंगन दो दीवार हैं उठ जाती
देख खेल ऐसा विधाता भी हो जाता बहुत हैरान
ईश्वर देखते तमाशा कि किसके हिस्से आती हैं मां
अंतिम क्षणों में भी तो ममता नहीं छोड़ पाती वो
मृत्यु को रोक अपने बेटों को देखना हैं चाहती मां
लड़ते देखती हैं अपनी औलादों को गहनों के लिए
अपने अश्रु धार को पत्थर बना चली जाती हैं मां
उसके जाने के बाद जब लगती हैं जमाने से ठोकर
निराश हताश होकर जब आता हैं बेटा अपने घर
उसके घर का कोना कोना भी आज साथ रोता हैं
तस्वीर से कहता मुझे भी अपने पास बुला लो मां
तस्वीर से आती आवाज़ ऐसे आंसु मत बहा लाल
तुझे ऐसा तड़पता परेशान नहीं देख सकती हैं मां
मेरे दिए संस्कारों पर अब तुम आगे बढ़ना शिवोम
तुम्हारी कामयाबी का इंतजार आज भी करती हैं मां
वादा हैं मां आपसे मैं कामयाब भी होकर दिखाऊंगा
लिखूंगा अब मैं ऐसा सबकी सोच में बदलाव लाऊंगा
दिखी मां कोई दहलीज पर निहारती अपने लाल को
पहना कर ऐनक उन आंखों से आंसू भी मिटाऊंगा मां
जनकवि कहते हैं मुझको तो जनकवि बन दिखलाऊंगा
वादा हैं मेरा मां तुमसे वृद्धाश्रमों में ताला मैं लगवाऊंगा
जब लिखूंगा कोई पुस्तक सबसे पहले जिक्र तेरा होगा
लिखूंगा तुझे पूरा सागर ख़ुद को एक बूंद बताऊंगा मां
✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय
तृतीय चरण
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